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ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 60/ मन्त्र 1
प्र गा॑य॒त्रेण॑ गायत॒ पव॑मानं॒ विच॑र्षणिम् । इन्दुं॑ स॒हस्र॑चक्षसम् ॥
स्वर सहित पद पाठप्र । गा॒य॒त्रेण॑ । गा॒य॒त॒ । पव॑मानम् । विऽच॑र्षणिम् । इन्दु॑म् । स॒हस्र॑ऽचक्षसम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र गायत्रेण गायत पवमानं विचर्षणिम् । इन्दुं सहस्रचक्षसम् ॥
स्वर रहित पद पाठप्र । गायत्रेण । गायत । पवमानम् । विऽचर्षणिम् । इन्दुम् । सहस्रऽचक्षसम् ॥ ९.६०.१
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 60; मन्त्र » 1
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 17; मन्त्र » 1
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 17; मन्त्र » 1
विषय - 'पवमान' इन्दु
पदार्थ -
[१] (गायत्रेण) = गायत्र साम के द्वारा इस (पवमानम्) = हमारे जीवन को पवित्र करनेवाले (इन्दुम्) = सोम को प्रगायत प्रगीत करो। इस सोम के गुणों का गान हमें इसके रक्षण के लिये प्रेरित करेगा । वेद में इस सोम का गायन प्रधानतया गायत्री छन्द के मन्त्रों में ही है। यह छन्द भी 'गया: त्राणा:, तान् तत्रे' इस व्युत्पत्ति से प्राणरक्षण का संकेत कर रहा है। सुरक्षित सोम ही प्राणरक्षण का साधन बनता है। [२] उस सोम का गायन करो जो (विचर्षणिम्) = विशेषरूप से हमारा ध्यान करता है [ look after ] और (सहस्त्रचक्षसम्) = सहस्रों ज्ञानों को देनेवाला है ।
भावार्थ - भावार्थ- हम सोम के गुणों का गायन करें, 'यह पवमान है, सहस्रचक्षस् ' है ।
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