ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 90/ मन्त्र 1
प्र हि॑न्वा॒नो ज॑नि॒ता रोद॑स्यो॒ रथो॒ न वाजं॑ सनि॒ष्यन्न॑यासीत् । इन्द्रं॒ गच्छ॒न्नायु॑धा सं॒शिशा॑नो॒ विश्वा॒ वसु॒ हस्त॑योरा॒दधा॑नः ॥
स्वर सहित पद पाठप्र । हि॒न्वा॒नः । ज॒नि॒ता । रोद॑स्योः । रथः॑ । न । वाज॑म् । स॒नि॒ष्यन् । चया॒सी॒त् । इन्द्र॑म् । गच्छ॑न् । आयु॑धा । स॒म्ऽशिशा॑नः । विश्वा॑ । वसु॒ । हस्त॑योः । आ॒ऽदधा॑नः ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र हिन्वानो जनिता रोदस्यो रथो न वाजं सनिष्यन्नयासीत् । इन्द्रं गच्छन्नायुधा संशिशानो विश्वा वसु हस्तयोरादधानः ॥
स्वर रहित पद पाठप्र । हिन्वानः । जनिता । रोदस्योः । रथः । न । वाजम् । सनिष्यन् । चयासीत् । इन्द्रम् । गच्छन् । आयुधा । सम्ऽशिशानः । विश्वा । वसु । हस्तयोः । आऽदधानः ॥ ९.९०.१
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 90; मन्त्र » 1
अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 26; मन्त्र » 1
अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 26; मन्त्र » 1
विषय - 'वाज व वसु' का प्रदाता सोम
पदार्थ -
(प्र हन्विानः) = प्राणसाधना आदि के द्वारा प्रकर्षेण शरीर में प्रेरित किया जाता हुआ यह सोम (रोदस्योः) = द्यावापृथिवी का, मस्तिष्क व शरीर का जनिता=प्रादुर्भाव करनेवाला है। मस्तिष्क को यह दीप्त बनाता है और शरीर को दृढ़ करता है । (रथः न) = जीवनयात्रा के लिये यह रथ के समान है । (वाजं सनिष्यन्) = शक्ति को देता हुआ यह (अयासीत्) = हमें प्राप्त होता है । (इन्द्रं गच्छन्) = जितेन्द्रिय पुरुष को प्राप्त होता हुआ (आयुधा संशिशानः) = ' इन्द्रिय, मन व बुद्धि' रूप जीवन संग्राम के अस्त्रों को तीव्र करता हुआ यह सोम हमारे लिये (विश्वा वसु) = सब धनों को (हस्तयोः आदधानः) = हाथों में धारण किये हुए है । सोमरक्षण से ही अन्नमय आदि सब कोशों का धान प्राप्त होता है।
भावार्थ - भावार्थ- सोम सब शक्तियों व वसुओं का प्रदाता है।
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