Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 15 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 15/ मन्त्र 12
    ऋषिः - गोषूक्त्यश्वसूक्तिनौ काण्वायनौ देवता - इन्द्र: छन्दः - विराडुष्निक् स्वरः - ऋषभः

    यदि॑न्द्र मन्म॒शस्त्वा॒ नाना॒ हव॑न्त ऊ॒तये॑ । अ॒स्माके॑भि॒र्नृभि॒रत्रा॒ स्व॑र्जय ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । इ॒न्द्र॒ । म॒न्म॒ऽशः । त्वा॒ । नाना॑ । हव॑न्ते । ऊ॒तये॑ । अ॒स्माके॑भिः । नृऽभिः॑ । अत्र॑ । स्वः॑ । ज॒य॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदिन्द्र मन्मशस्त्वा नाना हवन्त ऊतये । अस्माकेभिर्नृभिरत्रा स्वर्जय ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । इन्द्र । मन्मऽशः । त्वा । नाना । हवन्ते । ऊतये । अस्माकेभिः । नृऽभिः । अत्र । स्वः । जय ॥ ८.१५.१२

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 15; मन्त्र » 12
    अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 19; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    (इन्द्र) हे परमात्मन् ! (यत्) जो उपासक लोग (त्वा) आपको (मन्मशः) अपने-२ ज्ञान के अनुसार (नाना) अनेक प्रकार से (ऊतये) रक्षा के लिये (हवन्ते) आह्वान करते हैं, अतः (अत्र) इस यज्ञ में (अस्माकेभिः, नृभिः) हमारे नेताओं द्वारा स्तुत उनके सम्पादित (स्वः) बल को (जय) सम्बद्ध करें ॥१२॥

    भावार्थ - हे सबके रक्षक परमात्मन् ! जो उपासक जन आपको अपने ज्ञानानुसार अनेक प्रकार से अपनी रक्षा के लिये प्रेरित करते हैं, आप निश्चय ही उनके रक्षक होते हैं। हे प्रभो ! इस रक्षारूप यज्ञ में हमारे सब नेता आपकी स्तुति करते हैं। कृपा करके हमको बलप्रदान करें कि हमारी सब ओर से रक्षा हो ॥१२॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top