ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 105/ मन्त्र 1
तं व॑: सखायो॒ मदा॑य पुना॒नम॒भि गा॑यत । शिशुं॒ न य॒ज्ञैः स्व॑दयन्त गू॒र्तिभि॑: ॥
स्वर सहित पद पाठतम् । वः॒ । स॒खा॒यः॒ । मदा॑य । पु॒ना॒नम् । अ॒भि । गा॒य॒त॒ । शिशु॑म् । न । य॒ज्ञैः । स्व॒द॒य॒न्त॒ । गू॒र्तिऽभिः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
तं व: सखायो मदाय पुनानमभि गायत । शिशुं न यज्ञैः स्वदयन्त गूर्तिभि: ॥
स्वर रहित पद पाठतम् । वः । सखायः । मदाय । पुनानम् । अभि । गायत । शिशुम् । न । यज्ञैः । स्वदयन्त । गूर्तिऽभिः ॥ ९.१०५.१
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 105; मन्त्र » 1
अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 8; मन्त्र » 1
अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 8; मन्त्र » 1
पदार्थ -
(सखायः) हे उपासक लोगों ! (यज्ञैः स्वदयन्तः) जो कि आप लोग यज्ञ द्वारा परमात्मा का स्तवन करते हैं, (गूर्तिभिः) स्तुतियों द्वारा (तम्) उक्त परमात्मा को (वः, पुनानम्) जो आप सबको पवित्र करनेवाला है, (शिशुम्) प्रशंसनीय है, उसको आनन्द के लिये (अभिगायत) गायन करें ॥१॥
भावार्थ - जो लोग परमात्मा के यश का गायन करते हैं, वे अवश्यमेव परमात्मज्ञान को प्राप्त होते हैं ॥१॥
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