ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 11/ मन्त्र 1
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
उपा॑स्मै गायता नर॒: पव॑माना॒येन्द॑वे । अ॒भि दे॒वाँ इय॑क्षते ॥
स्वर सहित पद पाठउप॑ । अ॒स्मै॒ । गा॒य॒त॒ । न॒रः॒ । पव॑मानाय । इन्द॑वे । अ॒भि । दे॒वान् । इय॑क्षते ॥
स्वर रहित मन्त्र
उपास्मै गायता नर: पवमानायेन्दवे । अभि देवाँ इयक्षते ॥
स्वर रहित पद पाठउप । अस्मै । गायत । नरः । पवमानाय । इन्दवे । अभि । देवान् । इयक्षते ॥ ९.११.१
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 11; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 36; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 36; मन्त्र » 1
विषय - अब उक्त परमात्मा के उपासन का प्रकार कथन करते हैं।
पदार्थ -
(नरः) हे यज्ञ के नेता लोगों ! तुम (पवमानाय) सबको पवित्र करनेवाला (इन्दवे) ‘इन्दतीतीन्दुः’ और जो परम ऐश्वर्यवाला है, (उपास्मै) उसकी प्राप्ति के लिये (गायत) गायन करो, जो (अभि देवाँ इयक्षते) यज्ञादि कर्मों में विद्वानों की संगति को चाहता है ॥१॥
भावार्थ - परमात्मा उपदेश करता है कि हे मनुष्यों ! तुम यज्ञादि कर्मों में विद्वानों की संगति करो और मिलकर अपने उपास्य देव का गायन करो ॥१॥
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