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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 24 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 24/ मन्त्र 1
    ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    प्र सोमा॑सो अधन्विषु॒: पव॑मानास॒ इन्द॑वः । श्री॒णा॒ना अ॒प्सु मृ॑ञ्जत ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । सोमा॑सः । अ॒ध॒न्वि॒षुः॒ । पव॑मानासः । इन्द॑वः । श्री॒णा॒नाः । अ॒प्ऽसु । मृ॒ञ्ज॒त॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र सोमासो अधन्विषु: पवमानास इन्दवः । श्रीणाना अप्सु मृञ्जत ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र । सोमासः । अधन्विषुः । पवमानासः । इन्दवः । श्रीणानाः । अप्ऽसु । मृञ्जत ॥ ९.२४.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 24; मन्त्र » 1
    अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 14; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    (सोमासः) सोम्य स्वभाव को उत्पन्न करनेवाले परमात्मा के आह्लादादि गुण (पवमानासः) जो मनुष्य को पवित्र कर देनेवाले हैं, (इन्दवः) जो दीप्तिवाले हैं, जो कर्मयोगियों में (प्र) प्रकर्षता से आनन्द (अधन्विषुः) उत्पन्न करनेवाले हैं, (श्रीणानाः) सेवन किये हुए (अप्सु) शरीर मन और वाणी तीनों प्रकार के यत्नों में (मृञ्जत) शुद्धि को उत्पन्न करते हैं ॥१॥

    भावार्थ - परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे मनुष्यों ! तुम परमात्मा के गुणों का चिन्तन करके अपने मन वाणी तथा शरीर को शुद्ध करो। जिस प्रकार जल शरीर की शुद्धि करता है, परमात्मोपासन मन की शुद्धि करता है और स्वाध्याय अर्थात् वेदाध्ययन वाणी की शुद्धि करता है, इसी प्रकार परमात्मा के ब्रह्मचर्य्यादि गुण शरीर मन और वाणी की शुद्धि करते हैं। ‘ब्रह्म’ नाम यहाँ वेद का है। इस व्रत में इन्द्रियों का संयम भी करना अत्यावश्यक होता है, इसलिये ब्रह्मचर्य्य का अर्थ जितेन्द्रियता भी है। मुख्य अर्थ इसके वेदाध्ययन व्रत के ही हैं। वेदाध्ययन व्रत इन्द्रिय संयमद्वारा शरीर की शुद्धि करता है, ज्ञानद्वारा मन की शुद्धि करता है और अध्ययनद्वारा वाणी की शुद्धि करता है, इसी प्रकार परमात्मा के सत्य ज्ञान और अनन्तादि गुण आह्लाद उत्पन्न करके मन वाणी तथा शरीर की शुद्धि के कारण होते हैं। इसी अभिप्राय से उपनिषदों ने “सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म” तै० २।२। इत्यादि वाक्यों में परमात्मा के सत्यादि गुणों का वर्णन किया है ॥१॥

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