ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 4/ मन्त्र 2
ऋषिः - हिरण्यस्तूपः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
सना॒ ज्योति॒: सना॒ स्व१॒॑र्विश्वा॑ च सोम॒ सौभ॑गा । अथा॑ नो॒ वस्य॑सस्कृधि ॥
स्वर सहित पद पाठसना॑ । ज्योतिः॑ । सना॑ । स्वः॑ । विश्वा॑ । च॒ । सो॒म॒ । सौभ॑गा । अथ॑ । नः॒ । वस्य॑सः । कृ॒धि॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
सना ज्योति: सना स्व१र्विश्वा च सोम सौभगा । अथा नो वस्यसस्कृधि ॥
स्वर रहित पद पाठसना । ज्योतिः । सना । स्वः । विश्वा । च । सोम । सौभगा । अथ । नः । वस्यसः । कृधि ॥ ९.४.२
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 4; मन्त्र » 2
अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 22; मन्त्र » 2
अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 22; मन्त्र » 2
पदार्थ -
(सोम) हे सौम्यस्वभावयुक्त परमात्मन् ! (सन, ज्योतिः) सदा ज्योतिःस्वरूप हो (च) और (सन, स्वः) सदा सुखस्वरूप हो (विश्वा) सम्पूर्ण (सौभगा) सोभाग्यदायक वस्तुएँ आप हमको दें (अथ) और (नः) हमको (वस्यसस्कृधि) मुक्ति सुख दें ॥२॥
भावार्थ - परमात्मा नित्य-शुद्ध-बुद्ध-मुक्त स्वभाव है। उसी की कृपा से नाना विधि के सौभाग्य मिलते हैं और मोक्षसुख मिलता है ॥२॥
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