ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 46/ मन्त्र 3
ए॒ते सोमा॑स॒ इन्द॑व॒: प्रय॑स्वन्तश्च॒मू सु॒ताः । इन्द्रं॑ वर्धन्ति॒ कर्म॑भिः ॥
स्वर सहित पद पाठए॒ते । सोमा॑सः । इन्द॑वः । प्रय॑स्वन्तः । च॒मू इति॑ । सु॒ताः । इन्द्र॑म् । व॒र्ध॒न्ति॒ । कर्म॑ऽभिः ॥
स्वर रहित मन्त्र
एते सोमास इन्दव: प्रयस्वन्तश्चमू सुताः । इन्द्रं वर्धन्ति कर्मभिः ॥
स्वर रहित पद पाठएते । सोमासः । इन्दवः । प्रयस्वन्तः । चमू इति । सुताः । इन्द्रम् । वर्धन्ति । कर्मऽभिः ॥ ९.४६.३
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 46; मन्त्र » 3
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 3; मन्त्र » 3
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 3; मन्त्र » 3
पदार्थ -
(सुताः एते इन्दवः सोमासः) ये उत्पन्न किये गये परमैश्वर्यशाली विद्वान् लोग (चमू प्रयस्वन्तः) सेनाओं में प्रयत्न करते हुए (कर्मभिः) अनेक प्रकार की क्रियाओं से (इन्द्रम्) अपने स्वामी को (वर्धयन्ति) जययुक्त करके समृद्ध बनाते हैं ॥३॥
भावार्थ - कर्म्मयोगियों के प्रभाव से ही सैनिक बल की वृद्धि होती है और कर्म्मयोगियों के प्रभाव से ही सम्राट् सम्पूर्ण देश-देशान्तरों का शासन करता है, इसलिये परमात्मा ने इन मन्त्रों में कर्म्मयोगियों के सत्कार का वर्णन किया है ॥३॥
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