ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 49/ मन्त्र 1
पव॑स्व वृ॒ष्टिमा सु नो॒ऽपामू॒र्मिं दि॒वस्परि॑ । अ॒य॒क्ष्मा बृ॑ह॒तीरिष॑: ॥
स्वर सहित पद पाठपव॑स्व । वृ॒ष्टिम् । आ । सु । नः॒ । अ॒पाम् । ऊ॒र्मिम् । दि॒वः । परि॑ । अ॒य॒क्ष्माः । बृ॒ह॒तीः । इषः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
पवस्व वृष्टिमा सु नोऽपामूर्मिं दिवस्परि । अयक्ष्मा बृहतीरिष: ॥
स्वर रहित पद पाठपवस्व । वृष्टिम् । आ । सु । नः । अपाम् । ऊर्मिम् । दिवः । परि । अयक्ष्माः । बृहतीः । इषः ॥ ९.४९.१
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 49; मन्त्र » 1
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 6; मन्त्र » 1
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 6; मन्त्र » 1
विषय - अब परमात्मा की शक्ति का वर्णन करते हैं।
पदार्थ -
हे परमात्मन् ! (नः) आप हमारे लिये (दिवस्परि) द्युलोक से (अपामूर्मिम्) जल की तरङ्गोंवाली (सुवृष्टिम्) सुन्दर वृष्टि को (आपवस्व) सम्यक् उत्पन्न करिये तथा (अयक्ष्माः बृहतीः इषः) रोगरहित महान् अन्नादि एश्वर्य को उत्पन्न करिये ॥१॥
भावार्थ - परमात्मा ने ही द्युलोक को वर्षणशील और पृथिवीलोक को नानाविध अन्नादि ओषधियों की उत्पत्ति का स्थान बनाया है ॥१॥
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