ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 52/ मन्त्र 1
परि॑ द्यु॒क्षः स॒नद्र॑यि॒र्भर॒द्वाजं॑ नो॒ अन्ध॑सा । सु॒वा॒नो अ॑र्ष प॒वित्र॒ आ ॥
स्वर सहित पद पाठपरि॑ । द्यु॒क्षः । स॒नत्ऽर॑यिः । भर॑त् । वाज॑म् । नः॒ । अन्ध॑सा । सु॒वा॒नः । अ॒र्ष॒ । प॒वित्रे॑ । आ ॥
स्वर रहित मन्त्र
परि द्युक्षः सनद्रयिर्भरद्वाजं नो अन्धसा । सुवानो अर्ष पवित्र आ ॥
स्वर रहित पद पाठपरि । द्युक्षः । सनत्ऽरयिः । भरत् । वाजम् । नः । अन्धसा । सुवानः । अर्ष । पवित्रे । आ ॥ ९.५२.१
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 52; मन्त्र » 1
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 9; मन्त्र » 1
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 9; मन्त्र » 1
विषय - अब सदुपदेश का वर्णन करते हैं।
पदार्थ -
हे परमात्मन् ! आप (परि द्युक्षः) सर्वोपरि प्रकाशमान हैं। आप (नः) हमारे लिये (सनद्रयिः) धनादिकों को देते हुए (अन्धसा) अन्नादि ऐश्वर्य के सहित (वाजम् भरत्) बल को परिपूर्ण करिये और (सुवानः) स्तुति किये जाने पर आप (पवित्रे आ अर्ष) पवित्र अन्तःकरण में निवास करिये ॥१॥
भावार्थ - परमात्मा उपदेश करते हैं कि हे जिज्ञासुजनों ! तुम लोग जब अपने अन्तःकरण को पवित्र बनाकर सम्पूर्ण ऐश्वर्यों को उपलब्ध करने की जिज्ञासा अपने हृदय में उत्पन्न करोगे, तब तुम ऐश्वर्य को उपलब्ध करोगे ॥१॥
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