ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 63/ मन्त्र 1
ऋषिः - निध्रुविः काश्यपः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
आ प॑वस्व सह॒स्रिणं॑ र॒यिं सो॑म सु॒वीर्य॑म् । अ॒स्मे श्रवां॑सि धारय ॥
स्वर सहित पद पाठआ । पव॑स्व । स॒ह॒स्रिण॑म् । र॒यिम् । सो॒म॒ । सु॒ऽवीर्य॑म् । अ॒स्मे इति॑ । श्रवां॑सि । धा॒र॒य॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ पवस्व सहस्रिणं रयिं सोम सुवीर्यम् । अस्मे श्रवांसि धारय ॥
स्वर रहित पद पाठआ । पवस्व । सहस्रिणम् । रयिम् । सोम । सुऽवीर्यम् । अस्मे इति । श्रवांसि । धारय ॥ ९.६३.१
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 63; मन्त्र » 1
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 30; मन्त्र » 1
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 30; मन्त्र » 1
विषय - अब दूसरी तरह से राजधर्म का उपदेश करते हैं।
पदार्थ -
(सोम) हे जगदीश्वर ! आप (सहस्रिणं स्ववीर्यं) अनन्त प्रकार का बल हमको प्रदान करें (रयिम्) और अनन्त प्रकार का ऐश्वर्य हमको प्रदान करें (अस्मे) हम में (श्रवांसि) सब प्रकार के विज्ञान (धारय) प्रदान करें। (आ पवस्व) सब तरह से पवित्र करें ॥१॥
भावार्थ - राजधर्म की पूर्ति के लिये इस मन्त्र में अनेक प्रकार के बलों की परमात्मा से याचना की गई है ॥१॥
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