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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 74 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 74/ मन्त्र 1
    ऋषिः - कक्षीवान् देवता - पवमानः सोमः छन्दः - पादनिचृज्ज्गती स्वरः - निषादः

    शिशु॒र्न जा॒तोऽव॑ चक्रद॒द्वने॒ स्व१॒॑र्यद्वा॒ज्य॑रु॒षः सिषा॑सति । दि॒वो रेत॑सा सचते पयो॒वृधा॒ तमी॑महे सुम॒ती शर्म॑ स॒प्रथ॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शिशुः॑ । न । जा॒तः । अव॑ । च॒क्र॒द॒त् । वने॑ । स्वः॑ । यत् । वा॒जी । अ॒रु॒षः । सिसा॑सति । दि॒वः । रेत॑सा । स॒च॒ते॒ । प॒यः॒ऽवृधा॑ । तम् । ई॒म॒हे॒ । सु॒ऽम॒ती । शर्म॑ । स॒ऽप्रथः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शिशुर्न जातोऽव चक्रदद्वने स्व१र्यद्वाज्यरुषः सिषासति । दिवो रेतसा सचते पयोवृधा तमीमहे सुमती शर्म सप्रथ: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शिशुः । न । जातः । अव । चक्रदत् । वने । स्वः । यत् । वाजी । अरुषः । सिसासति । दिवः । रेतसा । सचते । पयःऽवृधा । तम् । ईमहे । सुऽमती । शर्म । सऽप्रथः ॥ ९.७४.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 74; मन्त्र » 1
    अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 31; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    (वने) भक्ति के विषय में (यत्) जब (जातः) तत्काल उत्पन्न (शिशुः) बालक के (न) समान यह जिज्ञासु पुरुष स्वाभाविक रीति से (चक्रदत्) रोता है, तब (स्वः) सुखस्वरूप (वाजी) बलस्वरूप (अरुषः) प्रकाशस्वरूप परमात्मा (सिषासति) उसके उद्धार की इच्छा करता है। (दिवः रेतसा) जो परमात्मा द्युलोक से लेकर लोक-लोकान्तरों के साथ अपनी शक्ति से (सचते) संगत है और (पयः वृधा) जो अपने ऐश्वर्य से बृद्धि को प्राप्त है, (तम्) उस परमात्मा से (सप्रथः) विस्तृत अभ्युदय और (शर्म) निश्रेयस सुख इन दोनों की हम लोग (ईमहे) प्रार्थना करते हैं ॥१॥

    भावार्थ - जब पुरुष दूध पीनेवाले बच्चे के समान मुक्तकण्ठ से परमात्मा के आगे रोता है, तब परमात्मा उसे अवश्यमेव ऐश्वर्य देता है ॥१॥

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