ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 93/ मन्त्र 5
नू नो॑ र॒यिमुप॑ मास्व नृ॒वन्तं॑ पुना॒नो वा॒ताप्यं॑ वि॒श्वश्च॑न्द्रम् । प्र व॑न्दि॒तुरि॑न्दो ता॒र्यायु॑: प्रा॒तर्म॒क्षू धि॒याव॑सुर्जगम्यात् ॥
स्वर सहित पद पाठनु । नः॒ । र॒यिम् । उप॑ । मा॒स्व॒ । नृ॒ऽवन्त॑म् । पु॒ना॒नः । वा॒ताप्य॑म् । वि॒श्वऽच॑न्द्रम् । प्र । व॒न्दि॒तुः । इ॒न्दो॒ इति॑ । ता॒रि॒ । आयुः॑ । प्रा॒तः । म॒क्षु । धि॒याऽव॑सुः । ज॒ग॒म्या॒त् ॥
स्वर रहित मन्त्र
नू नो रयिमुप मास्व नृवन्तं पुनानो वाताप्यं विश्वश्चन्द्रम् । प्र वन्दितुरिन्दो तार्यायु: प्रातर्मक्षू धियावसुर्जगम्यात् ॥
स्वर रहित पद पाठनु । नः । रयिम् । उप । मास्व । नृऽवन्तम् । पुनानः । वाताप्यम् । विश्वऽचन्द्रम् । प्र । वन्दितुः । इन्दो इति । तारि । आयुः । प्रातः । मक्षु । धियाऽवसुः । जगम्यात् ॥ ९.९३.५
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 93; मन्त्र » 5
अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 3; मन्त्र » 5
अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 3; मन्त्र » 5
पदार्थ -
(इन्दो) हे प्रकाशस्वरूप परमात्मन् ! (नु) निश्चय करके (नः) हमारे लिये (रयिं) ऐश्वर्य (उपमास्व) आप दें और (नृवन्तं) लोकसंग्रहवाले मुझको (पुनानः) पवित्र करते हुए आप (वाताप्यं) प्रेमरूप (विश्वचन्द्रं) जो विश्व को प्रसन्न करनेवाला ऐश्वर्य्य है, वह मुझे दें और (वन्दितुः) इस उपासक की आपके द्वारा (प्रतारि) वृद्धि हो और (आयुः) आयु हो (धियावसु) सम्पूर्ण ज्ञानों के निधि जो आप हैं, (प्रातः) उपासनाकाल में (मक्षु) शीघ्र (जगम्यात्) आकर हमारी वृद्धि में आरूढ़ हों ॥५॥
भावार्थ - इस मन्त्र में प्रकाशस्वरूप परमात्मा से ऐश्वर्य्य की प्रार्थना की गई है ॥५॥ यह ९३ वाँ सूक्त और तीसरा वर्ग समाप्त हुआ ॥
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