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  • यजुर्वेद - अध्याय 10/ मन्त्र 18
    ऋषिः - देवावात ऋषिः देवता - यजमानो देवता छन्दः - स्वराट ब्राह्मी त्रिष्टुप्, स्वरः - धैवतः
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    इ॒मं दे॑वाऽअसप॒त्नꣳ सु॑वध्वं मह॒ते क्ष॒त्रा॑य मह॒ते ज्यैष्ठ्या॑य मह॒ते जान॑राज्या॒येन्द्र॑स्येन्द्रि॒याय॑। इ॒मम॒मुष्य॑ पु॒त्रम॒मुष्यै॑ पु॒त्रम॒स्यै वि॒शऽए॒ष वो॑ऽमी॒ राजा॒ सोमो॒ऽस्माकं॑ ब्राह्म॒णाना॒ राजा॑॥१८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒मम्। दे॒वाः॒। अ॒स॒प॒त्नम्। सु॒व॒ध्व॒म्। म॒ह॒ते। क्ष॒त्राय॑। म॒ह॒ते। ज्यैष्ठ्या॑य। म॒ह॒ते। जान॑राज्या॒येति॒ जान॑ऽराज्याय। इन्द्र॑स्य। इ॒न्द्रि॒याय॑। इ॒मम्। अ॒मुष्य॑। पु॒त्रम्। अ॒मुष्यै॑। पु॒त्रम्। अ॒स्यै। वि॒शे। ए॒षः। वः॒। अ॒मी॒ऽइत्य॑मी। राजा॑। सोमः॑। अ॒स्माक॑म्। ब्रा॒ह्म॒णाना॑म्। राजा॑ ॥१८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इमन्देवाऽअसुपत्नँ सुवध्वम्महते क्षत्राय महते ज्यैष्ठ्याय महते जानराज्यायेन्द्रस्येन्दियाय। इमममुष्य पुत्रममुष्यै पुत्रमस्यै विश एष वोमी राजा सोमोस्माकम्ब्राह्मणानाँ राजा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    इमम्। देवाः। असपत्नम्। सुवध्वम्। महते। क्षत्राय। महते। ज्यैष्ठ्याय। महते। जानराज्यायेति जानऽराज्याय। इन्द्रस्य। इन्द्रियाय। इमम्। अमुष्य। पुत्रम्। अमुष्यै। पुत्रम्। अस्यै। विशे। एषः। वः। अमीऽइत्यमी। राजा। सोमः। अस्माकम्। ब्राह्मणानाम्। राजा॥१८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 10; मन्त्र » 18
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    पदार्थ -

    हे ( देवाः ) = विद्वानो! ( इमम् ) = इस व्यक्ति को ( असपत्नम् ) = ऐकमत्य से ( सुवध्वम् ) = चुनो, इसलिए कि १. ( महते क्षत्राय ) = महान् आघात से रक्षणरूप कार्य को वह करे। 

    २. ( महते ज्यैष्ठ्याय ) = महान् ज्येष्ठता सम्पादनरूप कार्य को करनेवाला वह हो। राष्ट्र को वह ऊँचा ले-जानेवाला हो। 

    ३. ( महते जानराज्याय ) = महान् जनराज्य के लिए—लोकहित का राज्य करनेवाला हो। 

    ४. ( इन्द्रस्य इन्द्रियाय ) = इसे इसलिए चुनो कि यह राष्ट्र में प्रत्येक व्यक्ति को शक्तिशाली बनानेवाला हो। 

    ५. ( इयम् ) = इसको ( अमुष्य पुत्रम् ) = अमुक व्यक्ति के पुत्र को ( अमुष्यै पुत्रम् ) = अमुक माता के पुत्र को ( अस्यै विशः ) = इसी प्रजा के अङ्गभूत व्यक्ति को तुम चुनो। ( एषः ) = यह ( अमी ) = हे प्रजाओ! ( वः ) = तुम्हारा ( राजा ) = नियन्ता है। ( अस्माकं ब्राह्मणानां राजा ) = हम ब्राह्मणों का राजा तो ( सोमः ) = वह शान्त प्रभु ही है। ब्राह्मण किसी भी प्रकार की सम्पत्ति का मालिक नहीं है। वह सब परिग्रहों से ऊपर उठा हुआ होता है। यह पापों से भी ऊपर उठा रहता है, इसी से यह राजा का भी पथ-प्रदर्शन करनेवाला होता है।

    भावार्थ -

    भावार्थ — राष्ट्रपति का वरण यथासम्भव ऐकमत्येन होना ही ठीक है। विद्वान् बृहस्पति- तुल्य ब्राह्मण इस राष्ट्रपति का मार्ग-प्रदर्शक होता है। इनसे प्रेरणा प्राप्त करनेवाला राजा यहाँ ‘देववात’ कहलाता है।

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