Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 12/ मन्त्र 91
    ऋषिः - वरुण ऋषिः देवता - वैद्या देवताः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    0

    अ॒व॒पत॑न्तीरवदन् दि॒वऽओष॑धय॒स्परि॑। यं जी॒वम॒श्नवा॑महै॒ न स रि॑ष्याति॒ पूरु॑षः॥९१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒व॒पत॑न्ती॒रित्य॑व॒ऽपत॑न्तीः। अ॒व॒द॒न्। दि॒वः। ओष॑धयः। परि॑। यम्। जी॒वम्। अ॒श्नवा॑महै। नः। सः। रि॒ष्या॒ति॒। पूरु॑षः। पूरु॑ष॒ इति॒ पुरु॑षः ॥९१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अवपतन्तीरवदन्दिवऽओषधयस्परि । यञ्जीवमश्नवामहै न स रिष्याति पूरुषः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अवपतन्तीरित्यवऽपतन्तीः। अवदन्। दिवः। ओषधयः। परि। यम्। जीवम्। अश्नवामहै। नः। सः। रिष्याति। पूरुषः। पूरुष इति पुरुषः॥९१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 12; मन्त्र » 91
    Acknowledgment

    पदार्थ -
    १. गत मन्त्रों का ऋषि (भिषक्) = चारों रोगों का निवारण करता है, अतः 'वरुण' [निवारण करनेवाला] बन गया है। यह वरुण कहता है कि (दिवः परि) = द्युलोक के समीप से (अवपतन्ती:) = नीचे आती हुई, वृष्टि - बिन्दु के रूप में भूमि पर गिरती हुई (ओषधयः) = ओषधियाँ (अवदन्) = परस्पर बात-सी करती हैं कि २. (यम्) = जिस (जीवम्) = अनुत्क्रान्तप्राण पुरुष को (अश्नवामहै) = हम प्राप्त होती हैं (सः पुरुषः) = वह पुरुष (न रिष्याति) = हिंसित नहीं होता। ओषधियाँ मनुष्य की रक्षा करती हैं। ३. 'ये ओषधियाँ द्युलोक से नीचे आई हैं', अतः अलौकिक दिव्य गुणोंवाली हैं।

    भावार्थ - भावार्थ-ओषधियाँ दिव्य हैं। वृष्टिजल से इनका उत्पादन हुआ है। ये यदि जीवित पुरुष तक पहुँच जाएँ तो फिर उसे जाने नहीं देतीं, उसे जिला ही देती हैं।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top