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  • यजुर्वेद - अध्याय 12/ मन्त्र 92
    ऋषिः - वरुण ऋषिः देवता - वैद्या देवताः छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    याऽओष॑धीः॒ सोम॑राज्ञीर्ब॒ह्वीः श॒तवि॑चक्षणाः। तासा॑मसि॒ त्वमु॑त्त॒मारं॒ कामा॑य॒ शꣳ हृ॒दे॥९२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    या। ओष॑धीः। सोम॑राज्ञी॒रिति॒ सोम॑ऽराज्ञीः। ब॒ह्वीः। श॒तवि॑चक्षणा॒ इति॑ श॒तऽवि॑ऽचक्षणाः। तासा॑म्। अ॒सि॒। त्वम्। उ॒त्त॒मेत्यु॑त्ऽत॒मा। अर॑म्। कामा॑य। शम्। हृदे ॥९२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    या ओषधीः सोमराज्ञीर्बह्वीः शतविचक्षणाः । तासामसि त्वमुत्तमारङ्कामाय शँ हृदे ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    या। ओषधीः। सोमराज्ञीरिति सोमऽराज्ञीः। बह्वीः। शतविचक्षणा इति शतऽविऽचक्षणाः। तासाम्। असि। त्वम्। उत्तमेत्युत्ऽतमा। अरम्। कामाय। शम्। हृदे॥९२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 12; मन्त्र » 92
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    पदार्थ -
    १. 'वरुण' [वैद्य] रोग का निदान करके ओषधि का चुनाव [वरण] करता हुआ कहता है कि (याः ओषधीः) = जो ओषधियाँ (सोमराज्ञीः) = सोमरूप राजावाली हैं, अर्थात् जिन ओषधियों का राजा सोम है-सोमलता सर्वोत्तम ओषधि मानी गई है। (बह्वीः) = संख्या में अनन्त-सी हैं, हमारे शरीर की वृद्धि का कारण हैं [वह to increase], अङ्ग-प्रत्यङ्ग को दृढ़ करनेवाली हैं [ वह to strengthen ] । (शतविचक्षणाः) = [क] बहुवीर्य हैं अथवा [ख] रोगनिवारण में अनन्त [शत] चतुर [ विचक्षण] हैं। [ग] [चक्षण appearance ] अनन्त आकृतियों व रूपोंवाली हैं। [घ] अपने रसास्वाद से भूख को बढ़ानेवाली हैं [eatinga relish to promote appetite = चक्षण] (तासाम्) = उन ओषधियों में (त्वम्) = तू (उत्तमा असि) = सर्वोत्तम है । २. तू इस रोगी के (कामाय) = रोगनिवारणरूप ईप्सित [मनोरथ] के लिए (अरम्) = पर्याप्त = हो तथा (हृदे) = हृदय के लिए (शं भव) = शान्ति देनेवाली हो। तेरा इसके हृदय पर कुछ अशुभ प्रभाव न पड़े। तेरे प्रयोग से इसका दिल बैठने [heart sink न करे] न लगे।

    भावार्थ - भावार्थ - ओषधि की विशेषताएँ निम्न हैं। १. ये अपने सोम गुण से दीप्त हों, अर्थात् घबराहट को दूर करनेवाली हों । २. शरीर की वृद्धि व अङ्गों की दृढ़ता का कारण बनें। ३. बहुवीर्य हों-रोग को झट दूर करें। ४. रोगनिवारणरूप मनोरथ को पूरा करें। और ५. हृदय पर इनका कोई कुप्रभाव न हो।

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