Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 15/ मन्त्र 34
    ऋषिः - परमेष्ठी ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - आर्ष्युष्णिक् स्वरः - गान्धारः
    0

    स दु॑द्रव॒त् स्वाहुतः स दु॑द्रव॒त् स्वाहुतः। सु॒ब्रह्मा॑ य॒ज्ञः सु॒शमी॒ वसू॑नां दे॒वꣳराधो॒ जना॑नाम्॥३४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः। दु॒द्र॒व॒त्। स्वा᳖हुत॒ इति॒ सुऽआ॑हुतः। सः। दु॒द्र॒व॒त्। स्वा᳖हुत॒ इति॒ सुऽआ॑हुतः। सु॒ब्र॒ह्मेति॑ सु॒ऽब्रह्मा॑। य॒ज्ञः। सु॒शमीति॑ सु॒ऽशमी॑। वसू॑नाम्। दे॒वम्। राधः॑। जना॑नाम् ॥३४ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स दुद्रवत्स्वाहुतः स दुद्रवत्स्वाहुतः । सुब्रह्मा यज्ञः सुशमी वसूनां देवँ राधो जनानाम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सः। दुद्रवत्। स्वाहुत इति सुऽआहुतः। सः। दुद्रवत्। स्वाहुत इति सुऽआहुतः। सुब्रह्मेति सुऽब्रह्मा। यज्ञः। सुशमीति सुऽशमी। वसूनाम्। देवम्। राधः। जनानाम्॥३४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 15; मन्त्र » 34
    Acknowledgment

    पदार्थ -
    १. (सः) = वह (स्वाहुत:) = उत्तमता से समर्पण किया हुआ, अथवा उत्तमता से पुकारा हुआ प्रभु (दुद्रवत्) = शीघ्रता से प्राप्त होता है। (स्वाहुतः स दुद्रवत्) = पुकारा हुआ वह प्राप्त होता ही है। ये शब्द ठीक ही हैं कि 'knock, and it will be opened to you' खटखटाओ और यह दरवाज़ा तुम्हारे लिए खुलेगा ही। २. प्रभु वहाँ अवश्य पहुँचते हैं, जहाँ (वसूनाम्) = इस शरीररूपी देवाश्रम में उत्तमता से निवास करनेवालों का (सुब्रह्मा) = उत्तम ज्ञानियों से युक्त अथवा [शोभनं ब्रह्म यस्मिन्] उत्तम ज्ञान से युक्त (सुशमी) = [ शमी - कर्म] उत्तम कर्मोंवाला (यज्ञः) = यज्ञ प्रवृत्त होता है, अर्थात् जहाँ एक व्यक्ति युक्ताहार-विहार के द्वारा शरीर को नीरोग बनाता है, मस्तिष्क को ज्ञान परिपूर्ण करता है तथा हाथों द्वारा सदा उत्तम कर्मों में लगा रहकर जीवन को एक यज्ञ ही बना देता है, वहाँ प्रभु अवश्य उपस्थित होते हैं। ३. फिर प्रभु वहाँ अवश्य उपस्थित होते हैं जहाँ कि (जनानाम्) = अपनी शक्तियों का विकास करनेवालों का (देवं राधः) = दिव्य व्यवहार से सिद्ध किया हुआ धन होता है। आसुर लोग ही अन्याय से अर्थसञ्चय के लिए यत्नशील होते हैं। दैवी प्रवृत्तिवाले लोग देवयान से देवोचित व्यवहारों से ही राधः - कार्य-साधक धन जुटाते हैं। जहाँ धन न्याय मार्ग से ही प्राप्त करने की वृत्ति होती है, वहीं प्रभु का दर्शन होता है।

    भावार्थ - भावार्थ- प्रभु को वही पाता है जो १. स्वस्थ व ज्ञानी बनकर क्रियाशील होता है और इस प्रकार जीवन को एक यज्ञ बना देता है। तथा २. जो अपनी शक्तियों का विकास करता हुआ देवोचित न्यायमार्ग से व्यवहार - साधक धन कमाता है।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top