यजुर्वेद - अध्याय 15/ मन्त्र 63
ऋषिः - वसिष्ठ ऋषिः
देवता - विदुषी देवता
छन्दः - विराट्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
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आ॒योष्ट्वा॒ सद॑ने सादया॒म्यव॑तश्छा॒याया॑ समु॒द्रस्य॒ हृद॑ये। र॒श्मी॒वतीं॒ भास्व॑ती॒मा या द्यां भास्या पृ॑थि॒वीमोर्व॒न्तरि॑क्षम्॥६३॥
स्वर सहित पद पाठआ॒योः। त्वा॒। सद॑ने। सा॒द॒या॒मि॒। अव॑तः। छा॒याया॑म्। स॒मु॒द्रस्य॑। हृद॑ये। र॒श्मी॒वती॒मिति॑ रश्मि॒ऽवती॑म्। भास्व॑तीम्। आ। या। द्या॒म्। भासि॑। आ। पृ॒थि॒वीम्। आ। उ॒रु। अ॒न्तरि॑क्षम् ॥६३ ॥
स्वर रहित मन्त्र
आयोष्ट्वा सदने सादयाम्यवतश्छायायाँ समुद्रस्य हृदये । रश्मीवतीम्भास्वतीमा या द्याम्भास्या पृथिवीमोर्वन्तरिक्षम् ॥
स्वर रहित पद पाठ
आयोः। त्वा। सदने। सादयामि। अवतः। छायायाम्। समुद्रस्य। हृदये। रश्मीवतीमिति रश्मिऽवतीम्। भास्वतीम्। आ। या। द्याम्। भासि। आ। पृथिवीम्। आ। उरु। अन्तरिक्षम्॥६३॥
विषय - आयु-अवन् व समुद्र
पदार्थ -
१. पत्नी से कहते हैं कि (त्वा) = तुझे (आयोः) = [एति] गतिशील पुरुष के (सदने) = घर में (सादयामि) = स्थापित करते हैं। पति की प्रथम विशेषता यही है कि वह क्रियाशील हो, आलसी नहीं । २. (अवतः) = वासनाओं से अपना रक्षण करनेवाले पुरुष की (छायायाम्) = आश्रय में तुझे स्थापित करते हैं। वासनामय वृत्तिवाला पुरुष एकपत्नीव्रत न होकर गृहस्थ को नरक - सा बना देता है। विलास के कारण वह अपनी शक्ति को क्षीण करनेवाला होता है और पत्नी को भी रोगों का घर बना देता है। ३. (समुद्रस्य) = सदा आनन्दमय स्वभाववाले [स+मुद] पुरुष के हृदये हृदय में तुझे स्थापित करते हैं। खिझनेवाला पति घर को सुखी नहीं बना पाता। आर्थिक दृष्टि से भी वह घर को उन्नत बनाने में समर्थ नहीं होता। संसार में आगे बढ़ने के लिए प्रसन्न मनोवृत्ति नितान्त आवश्यक है। प्रसन्न मनोवृत्तिवाला ही पत्नी से भी उचित प्रेम कर पाता है। ४. कैसी तुझको ? जो तू (रश्मीवतीम्) = लगामवाली है, कर्मेन्द्रियों को मनरूप लगाम से काबू करके ही विषयों में विचरनेवाली है तथा (भास्वतीम्) = ज्ञानेन्द्रियों के (उचितं) = व्यापार से ज्ञान की खूब दीप्तिवाली बनी है। ५. (या) = जो तू (द्याम्) = अपने मस्तिष्करूप द्युलोक को (आभासि) = ज्ञान से खूब दीप्त कर लेती है और जो (पृथिवीम्) = शरीररूप पृथिवीलोक को पूर्ण स्वास्थ्य से (आभासि) = तेजस्वी बनानेवाली है तथा (उरु अन्तरिक्षम्) = अपने विशाल हृदयान्तरिक्ष को (आभासि) = नैर्मल्य से चमका देती है।
भावार्थ - भावार्थ- पति को गतिशील, वासनाओं से अपनी रक्षा करनेवाला व प्रसन्न स्वभावावाला होना है तथा पत्नी ने वश्येन्द्रिय व प्रकाशमय जीवनवाला बनकर मस्तिष्क, शरीर व हृदय तीनों को ही दीप्त करना है।
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