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  • यजुर्वेद - अध्याय 16/ मन्त्र 29
    ऋषिः - कुत्स ऋषिः देवता - रुद्रो देवता छन्दः - भुरिगतिजगती स्वरः - निषादः
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    नमः॑ कप॒र्दिने॑ च॒ व्युप्तकेशाय च॒ नमः॑ सहस्रा॒क्षाय॑ च श॒तध॑न्वने च॒ नमो॑ गिरिश॒याय॑ च शिपिवि॒ष्टाय॑ च॒ नमो॑ मी॒ढुष्ट॑माय॒ चेषु॑मते च॥२९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नमः॑। क॒प॒र्दिने॑। च॒। व्यु᳖प्तकेशा॒येति॒ व्यु᳖प्तऽकेशाय। च॒। नमः॑। स॒ह॒स्रा॒क्षायेति॑ सहस्र॒ऽअ॒क्षाय॑। च॒। श॒तध॑न्वन॒ इति॑ श॒तऽध॑न्वने। च॒। नमः॑। गि॒रि॒श॒यायेति॑ गिरिऽश॒याय॑। च॒। शि॒पि॒वि॒ष्टायेति॑ शिपिऽवि॒ष्टाय॑। च॒। नमः॑। मी॒ढुष्ट॑माय। मी॒ढुस्त॑मा॒येति॑ मी॒ढुःऽत॑माय। च॒। इषु॑मत॒ इतीषु॑ऽमते। च॒ ॥२९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नमः कपर्दिने च व्युप्तकेशाय च नमः सहस्राक्षाय च शतधन्वने च नमो गिरिशयाय च शिपिविष्टाय च नमो मीढुष्टमाय चेषुमते च नमो ह्रस्वाय ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    नमः। कपर्दिने। च। व्युप्तकेशायेति व्युप्तऽकेशाय। च। नमः। सहस्राक्षायेति सहस्रऽअक्षाय। च। शतधन्वन इति शतऽधन्वने। च। नमः। गिरिशयायेति गिरिऽशयाय। च। शिपिविष्टायेति शिपिऽविष्टाय। च। नमः। मीढुष्टमाय। मीढुस्तमायेति मीढुःऽतमाय। च। इषुमत इतीषुऽमते। च॥२९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 16; मन्त्र » 29
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    पदार्थ -
    १. (कपर्दिने) = [क-पर-द्] सुख की पूर्ति को देनेवाले ज्ञान प्रचारक ब्राह्मण का (नमः) = हम आदर करते हैं (च) = और (व्युप्तकेशाय) = जिसने सब बालों को मुण्डित करा दिया है उस ज्ञान - प्रचारक संन्यासी का (नमः) = हम आदर करते हैं । २. (सहस्राक्षाय) = गुप्तचररूपी हज़ारों आँखोंवाले राजा का हम आदर करते हैं, (च) = और राष्ट्र-रक्षा के लिए (शतधन्वने च) = सैकड़ों धनुर्धारी पुरुषोंवाले इस राजा के लिए (नमः) = हम आदरभाव रखते हैं । ३. (गिरिशयाय) = वाणी में शयन करनेवाले ज्ञानी के लिए च और शिपिविष्टाय 'यज्ञो वै शिपिः 'यज्ञों में प्रविष्ट व्यक्ति के लिए, सदा यज्ञों में जीवन बितानेवाले का (नमः) = हम आदर करते हैं। 'ज्ञान प्राप्त करना, ज्ञान प्राप्त करके तदनुसार यज्ञादि उत्तम कर्मों को करना' ऐसा जीवन-सूत्र बनाकर चलनेवाले पुरुष का हम आदर करते हैं । ४. [क] रक्षा के द्वारा (मीढुष्टमाय) = अधिक-से-अधिक सुखों का सेचन करनेवाले राजपुरुष के लिए (च) = और (इषुमते) = रक्षा के लिए प्रशस्त बाणों को धारण करनेवाले पुरुष का (नमः) = हम आदर करते हैं। [ख] (मीढुष्टमाय) - वृक्षों के खूब सेचक माली आदि के लिए तथा बाणादि का धारण कर पहरा देनेवाले के लिए (नमः) = हम आदर करते हैं।

    भावार्थ - भावार्थ- ज्ञानी ब्राह्मणों का तथा रक्षक क्षत्रियों का सदा मान करना चाहिए।

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