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  • यजुर्वेद - अध्याय 17/ मन्त्र 30
    ऋषिः - भुवनपुत्रो विश्वकर्मा ऋषिः देवता - विश्वकर्मा देवता छन्दः - आर्षी त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    तमिद् गर्भं॑ प्रथ॒मं द॑ध्र॒ऽआपो॒ यत्र॑ दे॒वाः स॒मग॑च्छन्त॒ विश्वे॑। अ॒जस्य॒ नाभा॒वध्येक॒मर्पि॑तं॒ यस्मि॒न् विश्वा॑नि॒ भुव॑नानि त॒स्थुः॥३०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तम्। इत्। गर्भ॑म्। प्र॒थ॒मम्। द॒ध्रे॒। आपः॑। यत्र॑। दे॒वाः। स॒मग॑च्छ॒न्तेति॑ सम्ऽअग॑च्छन्त। विश्वे॑। अ॒जस्य॑। नाभौ॑। अधि॑। एक॑म्। अर्पि॑तम्। यस्मि॑न्। विश्वा॑नि। भुव॑नानि। त॒स्थुः ॥३० ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तमिद्गर्भम्प्रथमन्दध्रऽआपो यत्र देवाः समगच्छन्त विश्वे । अजस्य नाभावध्येकमर्पितँयस्मिन्विश्वानि भुवनानि तस्थुः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    तम्। इत्। गर्भम्। प्रथमम्। दध्रे। आपः। यत्र। देवाः। समगच्छन्तेति सम्ऽअगच्छन्त। विश्वे। अजस्य। नाभौ। अधि। एकम्। अर्पितम्। यस्मिन्। विश्वानि। भुवनानि। तस्थुः॥३०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 17; मन्त्र » 30
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    पदार्थ -
    १. (तम् इत गर्भं प्रथमम्) = उस आश्चर्यभूत, निश्चय से ग्रहणीय, व्यापक परमात्मा को (आपः दध्रे) प्राण धारण करते हैं, अर्थात् प्राण- साधना होने पर ही, चित्तवृत्ति के निरोध से हम स्वरूप में स्थित होते हैं और प्रभु का दर्शन कर पाते हैं । २. (यत्र) = इस प्राण-साधन के होने पर विश्वे= (विशन्ति) उस प्रभु में प्रवेश करनेवाले जैसे नदियाँ समुद्र में, (देवा:) = ज्ञानज्योति से द्योतित हृदयवाले (विद्वान् समगच्छन्त) = सम्यक्तया प्रभु से सङ्गत होते हैं । ३. (अजस्य) = उस अजन्मा [न जायते] अथवा गति के द्वारा सब बुराइयों का प्रक्षेपण नाश करनेवाले [अज् गतिक्षेपणयोः] प्रभु की (नाभौ) = [नह बन्धने] बन्धनशक्ति में (एकम्) = यह नाना पुष्परूप लोक-लोकान्तरों से बना हुआ सुव्यवस्थित ब्रह्माण्डरूप हार (अध्यर्पितम्) = अर्पित हुआ हुआ है। ये सब लोकलोकान्तर उस प्रभु में इस प्रकार प्रोत [पिराये हुए] हैं जैस सूत्र में मणियों के गण प्रोत होते हैं। वे प्रभु सूत्र हैं, सूत्रों के भी सूत्र हैं। सब लोक उसी प्रभु में बद्ध हैं । ४. इस प्रकार वे प्रभु वे हैं (यस्मिन्) जिनमें (विश्वानि भुवनानि) = सब भूतजात (तस्थुः) = स्थित हैं। 'वे प्रभु किसी में स्थित हों' ऐसी बात नहीं। वे सर्वाश्रय हैं, उनका कोई अन्य आश्रय नहीं । वे प्रभु सचमुच 'भूतभृन्न च भूतस्थः ' सब भूतों का भरण करनेवाले, पर उनपर अनाश्रित हैं।

    भावार्थ - भावार्थ- वे प्रभु सब भूतों का भरण करनेवाले हैं। यह सारा ब्रह्माण्ड उन्हीं में अर्पित हैं।

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