यजुर्वेद - अध्याय 18/ मन्त्र 30
ऋषिः - देवा ऋषयः
देवता - राज्यावानात्मा देवता
छन्दः - स्वराड् जगती
स्वरः - निषादः
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वाज॑स्य॒ नु प्र॑स॒वे मा॒तरं॑ म॒हीमदि॑तिं॒ नाम॒ वच॑सा करामहे। यस्या॑मि॒दं विश्वं॒ भुव॑नमावि॒वेश॒ तस्यां॑ नो दे॒वः स॑वि॒ता धर्म॑ साविषत्॥३०॥
स्वर सहित पद पाठवाज॑स्य। नु। प्र॒स॒वे इति॑ प्रऽस॒वे। मा॒तर॑म्। म॒हीम्। अदि॑तिम्। नाम॑। वच॑सा। का॒रा॒म॒हे॒। यस्या॑म्। इ॒दम्। विश्व॑म्। भुव॑नम्। आ॒वि॒वेशेत्याऽवि॒वेश॑। तस्या॑म्। नः॒। दे॒वः। स॒वि॒ता। धर्म॑। सा॒वि॒ष॒त् ॥३० ॥
स्वर रहित मन्त्र
वाजस्य नु प्रसवे मातरँम्महीमदितिन्नाम वचसा करामहे । यस्यामिदँविश्वम्भुवनमाविवेश तस्यान्नो देवः सविता धर्म साविषत् ॥
स्वर रहित पद पाठ
वाजस्य। नु। प्रसवे इति प्रऽसवे। मातरम्। महीम्। अदितिम्। नाम। वचसा। कारामहे। यस्याम्। इदम्। विश्वम्। भुवनम्। आविवेशेत्याऽविवेश। तस्याम्। नः। देवः। सविता। धर्म। साविषत्॥३०॥
विषय - शक्ति के ऐश्वर्य में
पदार्थ -
१. (वाजस्य नु प्रसवे) = शक्ति के ऐश्वर्य में, अर्थात् शक्तिसम्पन्न ऐश्वर्य के द्वारा शक्ति व ऐश्वर्य का सम्पादन करते हुए (मातरं महीम्) = इस अपनी भूमिमाता को (वचसा) = वचन के द्वारा, अर्थात् प्रतिज्ञा करके (अदितिम्) = अखण्डित, शत्रुओं से अपराभूत नाम सार्थक नामवाला (करामहे) = करते हैं। वस्तुतः वैदिक संस्कृति में अब भी विवाह संस्कार के समय युवक व युवति व्रत लेते हैं कि हम अपने राष्ट्र को हारने नहीं देगें। व्रत का नाम ही 'जयाहोम' है। हम राष्ट्र की विजय के लिए आहुति देते हैं। २. यह हमारी मातृभूमि वह है (यस्याम्) = जिसमें (इदं विश्वं भुवनम्) = ये सब लोक (आविवेश) = समन्तात् प्रवेश करता है, यहाँ किसी का आना निषिद्ध नहीं। जो भी यहाँ आकर रहना चाहे सभी के लिए यहाँ स्थान है। ३. हमारी तो यही इच्छा है कि (तस्याम्) = उस मातृभूमि में (सविता देवः) = सबका उत्पादक देव (नः) = हममें (धर्म) = धर्म को (साविषत्) = उत्पन्न करे। हमारी मनोवृत्ति अधर्म की ओर न झुके। हमारे हृदयक्षेत्र में सद् गुणों के बीज का प्रभुकृपा से वपन हो ।
भावार्थ - भावार्थ - १. हम शक्तिसम्पन्न बनें, उचित ऐश्वर्य को कमानेवाले बनें। शक्ति के द्वारा यदि हम मातृभूमि को राजनैतिक दासता से मुक्त करें तो ऐश्वर्यवृद्धि द्वारा इसे आर्थिक पराधीनता से भी मुक्त करें। हम मातृभूमि की स्वतन्त्रता के लिए वचनबद्ध हों। २. हमारी मातृभूमि सभी का स्वागत करनेवाली हो। ३. इसमें रहते हुए प्रभुकृपा से हम धर्म की प्रवृत्तिवाले बनें।
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