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  • यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 49
    ऋषिः - शङ्ख ऋषिः देवता - पितरो देवताः छन्दः - विराट् त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    उदी॑रता॒मव॑र॒ऽउत्परा॑स॒ऽउन्म॑ध्य॒माः पि॒तरः॑ सो॒म्यासः॑। असुं॒ यऽई॒युर॑वृ॒काऽऋ॑त॒ज्ञास्ते नो॑ऽवन्तु पि॒तरो॒ हवे॑षु॥४९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उत्। ई॒र॒ता॒म्। अव॑रे। उत्। परा॑सः। उत्। म॒ध्य॒माः। पि॒तरः॑। सो॒म्यासः॑। असु॑म्। ये। ई॒युः। अ॒वृ॒काः। ऋ॒त॒ज्ञा इत्यृ॑त॒ऽज्ञाः। ते। नः॒। अ॒व॒न्तु॒। पि॒तरः॑। हवे॑षु ॥४९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उदीरतामवर उत्परास उन्मध्यमाः पितरः सोम्यासः । असुँयऽईयुरवृकाऽऋतज्ञास्ते नोवन्तु पितरो हवेषु ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    उत्। ईरताम्। अवरे। उत्। परासः। उत्। मध्यमाः। पितरः। सोम्यासः। असुम्। ये। ईयुः। अवृकाः। ऋतज्ञा इत्यृतऽज्ञाः। ते। नः। अवन्तु। पितरः। हवेषु॥४९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 19; मन्त्र » 49
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    पदार्थ -
    १. गतमन्त्र का वैखानस ऋषि हवि के द्वारा सब प्राणों को उत्तम बनाकर 'शंख' = उत्तम, शान्त इन्द्रियोंवाला बनता है। [शंख]। यह प्रार्थना करता है कि (अवरे) = सबसे अर्वाचीन काल में होनेवाले मेरे पिता (उदीरताम्) = मुझे उत्कृष्ट प्रेरणा दें। (उत्) = और (परासः) = सुदूर काल में होनेवाले मेरे प्रपितामह भी (उदीरताम्) = मुझे उत्कृष्ट प्रेरणा देनेवाले हों। (उत्) = और (मध्यमाः) = इन दोनों के मध्य में होनेवाले मेरे पितामह भी (उदीरताम्) = मुझे उत्कृष्ट प्रेरणा प्राप्त कराएँ । २. ये सब (पितर:) = मेरा पालन करनेवाले पिता-पितामह व प्रपितामह, (सोम्यासः) = अत्यन्त सौम्य स्वभाव के हैं, अथवा सोम का सम्पादन करनेवालों में उत्तम हैं। ये अपनी शक्ति का व्यर्थ में अपव्यय नहीं होने देते और इसलिए ३. ये वे हैं (ये) = जो (असुं ईयुः) = प्राणशक्ति को प्राप्त करते हैं। सोमरक्षण से इनकी प्राणशक्ति स्थिर रहती है। इस प्राणशक्ति की स्थिरता से ये स्वस्थ व दीर्घजीवी होते हैं। ४. (अवृकाः) = [वृक आदाने] ये वे हैं जिन्हें धन के आदान का लोभ नहीं है। इस धनलोभ के न होने से ये सब वासनाओं से ऊपर उठे हुए हैं। लोभ ही तो वासनावृक्ष का मूल है। उसके अभाव में इनका जीवन व्यसनों से ऊपर उठा हुआ है। ५. (ऋतजा:) = ये ऋत के ज्ञानवाले हैं, इन्हें सब सत्य ज्ञान प्राप्त है। इनका मस्तिष्क इस सत्यज्ञान से चमक रहा है। ६. (ते पितरः) = वे पितर (नः) = हमें (हवेषु) = जब-जब हम इन्हें पुकारें- आमन्त्रित करें उस-उस पुकारने के समय पर (अवन्तु) = रक्षित करें। उत्तम प्रेरणा प्राप्त कराके ये हमारे जीवनों को सन्मार्ग पर लानेवाले हों।

    भावार्थ - भावार्थ-पिता- पितामह व प्रपितामह सभी हमें समय-समय पर उत्तम प्रेरणाएँ प्राप्त कराके अपने क्रियात्मक उदाहरण से स्वस्थ, निर्लोभ व सत्यज्ञान परिपूर्ण बनने के लिए उत्साहित करें।

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