यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 82
तद॒श्विना॑ भि॒षजा॑ रु॒द्रव॑र्तनी॒ सर॑स्वती वयति॒ पेशो॒ऽअन्त॑रम्। अस्थि॑ म॒ज्जानं॒ मास॑रैः कारोत॒रेण॒ दध॑तो॒ गवां॑ त्व॒चि॥८२॥
स्वर सहित पद पाठतत्। अ॒श्विना॑। भि॒षजा॑। रु॒द्रव॑र्त्तनी॒ इति॑ रु॒द्रऽव॑र्त्तनी। सर॑स्वती। व॒य॒ति॒। पेशः॑। अन्त॑रम्। अस्थि॑। म॒ज्जान॑म्। मास॑रैः। का॒रो॒त॒रेण॑। दध॑तः। गवा॑म्। त्व॒चि ॥८२ ॥
स्वर रहित मन्त्र
तदश्विना भिषजा रुद्रवर्तनी सरस्वती वयति पेशोऽअन्तरम् । अस्थिमज्जानम्मासरैः कारोतरेण दधतो गवान्त्वचि ॥
स्वर रहित पद पाठ
तत्। अश्विना। भिषजा। रुद्रवर्त्तनी इति रुद्रऽवर्त्तनी। सरस्वती। वयति। पेशः। अन्तरम्। अस्थि। मज्जानम्। मासरैः। कारोतरेण। दधतः। गवाम्। त्वचि॥८२॥
विषय - रुद्रवर्तनी अश्विनौ
पदार्थ -
१. गतमन्त्र के अनुसार जब 'शष्प, तोक्म व लाजा' इसके भोजन होते हैं, (तत्) = तब (रुद्रवर्तनी) = [रुद्रस्य वर्तनिरिव वर्तनिर्ययोः] रुद्र के समान मार्गवाले, [रोरुमयाणो द्रवति इति रुद्र:] रुद्र गर्जना करता हुआ शत्रुओं पर आक्रमण करता है, इसी प्रकार (अश्विना) = प्राणापान (भिषजा) = इसके वैद्य होते हैं। ये गर्जते हुए प्रबलता से रोगरूप शत्रुओं पर आक्रमण करते हैं । प्राणापान की शक्ति की वृद्धि से इसके सब रोग नष्ट हो जाते हैं। २. (सरस्वती) = ज्ञान की अधिदेवता (अन्तरम् पेश:) = अन्दर के सौन्दर्य [रूप] को (वयति) = सन्तत करती है। प्राणापान इसे स्वस्थ बनाकर बाह्य रूप को सुन्दर बनाते है, तो ज्ञान इसके मस्तिष्क को दीप्त करके इसके अन्तः सौन्दर्य को बढ़ाता है । ३. (मासरै:) = [ मासेषु रमणैः] सब मासों में अर्थात् सदा रमण से, आनन्दमय मनोवृत्ति के धारण से (अस्थि मज्जानम्) = यह अस्थियों व मज्जा को (वयति) = सन्तत करता है, बढ़ाता है। वस्तुतः सदा ऋतु को अभिशाप देते रहने से और खिझते रहने से अस्थि व मज्जा शिथिल हो जाते हैं, और स्वास्थ्य एकदम गिर जाता है। २. (अश्विना) = प्राणापान ही (कारोतरेण) = [कारुः शिल्पिनि कारके, तरप्रत्यय] अत्यधिक कलापूर्ण ढंग से कार्यों के करने, (गवां त्वचि) = वेदवाणियों-ज्ञान की वाणियों के सम्पर्क में (दधतः) = इसे धारण करते हैं, अर्थात् यह प्राणापान की शक्ति के वर्धन से सूक्ष्म बुद्धि होकर सदा ज्ञान की वाणियों के सम्पर्क में रहना चाहता है।
भावार्थ - भावार्थ- प्राणापान वैद्य हैं, ज्ञान से अन्तःसौन्दर्य प्राप्त होता है। सदा प्रसन्न रहने से अस्थि, मज्जा आदि ठीक रहते हैं। उत्तमता से कर्मों में लगे रहने से मनुष्य ज्ञान की रुचिवाला बनता है।
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