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  • यजुर्वेद - अध्याय 23/ मन्त्र 21
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - न्यायधीशो देवता छन्दः - भुरिग्गायत्री स्वरः - षड्जः
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    उत्स॑क्थ्या॒ऽअव॑ गु॒दं धे॑हि॒ सम॒ञ्जिं चा॑रया वृषन्। य स्त्री॒णां जी॑व॒भोज॑नः॥२१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उत्स॑क्थ्या॒ इत्युत्ऽस॑क्थ्याः। अव॑। गु॒दम्। धे॒हि॒। सम्। अ॒ञ्जिम्। चा॒र॒य॒। वृ॒ष॒न्। यः। स्त्री॒णाम्। जी॒व॒भोज॑न॒ इति॑ जीव॒ऽभोज॑नः ॥२१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उत्सक्थ्याऽअव गुदन्धेहि समञ्जिञ्चारया वृषन् । य स्त्रीणाञ्जीवभोजनः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    उत्सक्थ्या इत्युत्ऽसक्थ्याः। अव। गुदम्। धेहि। सम्। अञ्जिम्। चारय। वृषन्। यः। स्त्रीणाम्। जीवभोजन इति जीवऽभोजनः॥२१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 23; मन्त्र » 21
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    पदार्थ -
    १. गतमन्त्र में 'वृषा, वाजी व रेतोधा' का उल्लेख था। राष्ट्र में प्रजाओं में सदाचार फैलाना, सदाचार के वातावरण को उत्पन्न करना यह राजा का मुख्य कार्य होना चाहिए तभी प्रजाएँ शक्तिसम्पन्न बन पाएँगी। प्रस्तुत मन्त्र में राजा के लिए कहते हैं कि हे (वृषन्) = शक्तिशालिन् तथा प्रजाओं पर सुखों की वृष्टि करनेवाले राजन्! आप (यः स्त्रीणां जीवभोजन:) = जो स्त्रियों पर आजीविका चलानेवाला पुरुष है उस (गुदम्) = [गुद् क्रीडायाम्] विलासमय क्रीडावाले भोगासक्त पुरुष को (उत्सक्थ्या:) = [ उद्गते सक्थिनी यस्य] ऊपर जांघोंवाला (अवधेहि) = नीचे सिरवाला करके स्थापित कर, अर्थात् इसे उलटा लटका दे । विलास व व्यभिचार को फैलानेवाले को उलटा लटका देना चाहिए। इस प्रकार का कठोर दण्ड 'व्यभिचार' आदि को रोकने के लिए आवश्यक है। २. राजा को यह भी चाहिए कि (अञ्जिं संचारय) = ज्ञान के प्रकाश को फैलाये [अंजि= Brilliance ] । अपराधों को दूर करने के लिए जहाँ अपराधियों को ऐसा दण्ड देना जो प्रत्यादेश के लिए हो, अर्थात् प्रजाओं में अपराधों को रोकनेवाला हो, वहाँ ज्ञान के प्रकाश को भी फैलाना चाहिए, जिससे लोगों की मनोवृत्ति ही परिवर्तित हो जाए। व्यभिचार से होनेवाली हानियों के जानने पर तथा संयमी जीवन के लाभों के स्पष्ट होने पर लोग इन बुराइयों से सम्भवतः दूर हटेंगे।

    भावार्थ - भावार्थ - राजा राष्ट्र में व्यभिचार को रोकने के लिए विलासी पुरुष को उलटा लटकवा दे तथा राष्ट्र में व्यभिचार की हानियों व संयम के लाभों के ज्ञान का प्रचार करवाए, जिससे लोगों की मनोवृत्ति में परिवर्तन किया जा सके।

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