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  • यजुर्वेद - अध्याय 4/ मन्त्र 9
    ऋषिः - आङ्गिरस ऋषयः देवता - विद्वान् देवता छन्दः - आर्षी पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
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    ऋ॒क्सा॒मयोः॒ शिल्पे॑ स्थ॒स्ते वा॒मार॑भे॒ ते मा॑ पात॒मास्य य॒ज्ञस्यो॒दृचः॑। शर्मा॑सि॒ शर्म॑ मे यच्छ॒ नम॑स्तेऽअस्तु॒ मा मा॑ हिꣳसीः॥९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ऋक्सा॒मयो॒रित्यृ॑क्ऽसा॒मयोः॑। शि॒ल्पे॒ऽइति॒ शि॒ल्पे॑। स्थः॒। तेऽइति॒ ते। वा॒म्। आ। र॒भे॒। तेऽइति॒ ते। मा॒। पा॒त॒म्। आ। अ॒स्य। य॒ज्ञस्य॑। उ॒दृचः॒ इत्यु॒त्ऽऋचः॑। शर्म्म॑। अ॒सि॒। शर्म्म॑। मे॒। य॒च्छ॒। नमः॑। ते॒। अ॒स्तु॒। मा। मा॒। हि॒ꣳसीः॒ ॥९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ऋक्सामयोः शिल्पे स्थस्ते वामारभे ते मा पातमास्य यज्ञस्योदृचः । शर्मासि शर्म मे यच्छ नमस्ते अस्तु मा मा हिँसीः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    ऋक्सामयोरित्यृक्ऽसामयोः। शिल्पेऽइति शिल्पे। स्थः। तेऽइति ते। वाम्। आ। रभे। तेऽइति ते। मा। पातम्। आ। अस्य। यज्ञस्य। उदृचः इत्युत्ऽऋचः। शर्म्म। असि। शर्म्म। मे। यच्छ। नमः। ते। अस्तु। मा। मा। हिꣳसीः॥९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 4; मन्त्र » 9
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    पदार्थ -

    १. पिछले मन्त्र के ‘आत्रेय’ जब गृहस्थ में प्रवेश करते हैं तो आसक्तिवाला जीवन न होने के कारण वे आङ्गिरस = शक्तिशाली बने रहते हैं। प्रभु इनसे कहते हैं कि तुम ( ऋक्सामयोः ) = विज्ञान व उपासना दोनों के ( शिल्पे ) = [ शिल्पं कर्म—नि० २।१ ] निर्माण करनेवाले हो। तुम्हारा जीवन विज्ञान व उपासना से परिपूर्ण होता है। ये पति-पत्नी अलग-अलग प्रभु से प्रार्थना करते हैं कि ( ते वाम् ) = उन दोनों को ( आरभे ) = मैं अपने जीवन में ग्रहण करना आरम्भ करता हूँ, अर्थात् ज्ञान-प्राप्ति के लिए मैं स्वाध्याय को अपनाता हूँ और उपासना के लिए ध्यान को—सन्ध्या को। ( ते ) = वे विज्ञान और उपासना ( मा ) = मेरे ( अस्य यज्ञस्य ) = इस यज्ञ की ( उदृचः ) = अन्तिम ऋचा तक, अर्थात् जीवन-पथ के अन्त तक [ up to the end of life ] ( पातम् ) = रक्षा करें, अर्थात् ये विज्ञान और उपासना जीवन के अन्तिम दिन तक मुझे वासनाओं का शिकार होने से बचाएँ। 

    २. इस प्रकार जीवन-पथ में वासना से बचकर यह सचमुच ‘आङ्गिरस’ बन जाता है और प्रभु से प्रार्थना करता है कि हे प्रभो! ( शर्म असि ) = आप अत्यन्त आनन्दमय हो, आनन्दरूप हो। ( शर्म मे यच्छ ) = अपने उपासक मुझे भी आनन्द प्राप्त कराइए। ( नमः ते अस्तु ) = मैं आपके प्रति नतमस्तक होता हूँ। ( मा मा हिंसीः ) =  आप मुझे नष्ट मत कीजिए। विलास में फँसने से बचाकर मुझे हिंसित होने से बचाइए।

    भावार्थ -

    भावार्थ — मेरा जीवन ऋक्साममय हो। मेरा जीवन विद्या व श्रद्धा पर आधारित हो। मैं आनन्दमय प्रभु का उपासक बनूँ और सचमुच आनन्द का भागी होऊँ।

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