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  • यजुर्वेद - अध्याय 5/ मन्त्र 15
    ऋषिः - मेधातिथिर्ऋषिः देवता - विष्णुर्देवता छन्दः - भूरिक् आर्षी गायत्री, स्वरः - षड्जः
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    इ॒दं विष्णु॒र्विच॑क्रमे त्रे॒धा निद॑धे प॒दम्। समू॑ढमस्य पासु॒रे स्वाहा॑॥१५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒दम्। विष्णुः॑। वि। च॒क्र॒मे॒। त्रे॒धा। नि। द॒धे॒। प॒दम् ॥ समू॑ढ॒मिति॒ सम्ऽऊ॑ढम्। अ॒स्य॒। पा॒सु॒रे। स्वाहा॑ ॥१५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इदँविष्णुर्विचक्रमे त्रेधा नि दधे पदम् । समूढमस्य पाँसुरे स्वाहा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    इदम्। विष्णुः। वि। चक्रमे। त्रेधा। नि। दधे। पदम्॥ समूढमिति सम्ऽऊढम्। अस्य। पासुरे। स्वाहा॥१५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 5; मन्त्र » 15
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    पदार्थ -

    १. गत मन्त्र की समाप्ति पर उस सविता देव की महान् स्तुति का उल्लेख था। उसी स्तुति को प्रस्तुत मन्त्र में कहते हैं कि ( विष्णुः ) = वह व्यापक परमात्मा ( इदम् ) = इस ब्रह्माण्ड को ( विचक्रमे ) = विशेष क्रमपूर्वक बनाता है। संसार को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो संसार में एक विशेष क्रम दीखता है। ‘विमानः’ शब्द इसी भावना को व्यक्त कर रहा है कि परमेश्वर ने इस ब्रह्माण्ड के पिण्डों को विशेष मानपूर्वक बनाया है। 

    २. ( त्रेधा ) = तीन प्रकार के ( पदम् ) = पगों को ( निदधे ) = उस प्रभु ने रक्खा है। ‘द्युलोक, अन्तरिक्षलोक व पृथिवीलोक’ ये ही तीन पग हैं। 

    ३. ये जितने भी पिण्ड हैं वे सब-के-सब मूल में परमाणुरूप थे। परमाणुओं को ही वह-वह आकृति प्राप्त हो गई—‘किस प्रकार कणों से सुन्दर कान्तिमय पिण्डों का निर्माण हो गया ?’ इस बात को सोचते हैं तो आश्चर्य ही होता है कि ( पांसुरे ) = धूलिकणमय प्रकृति-समुद्र में इन लोक-लोकान्तरों का ( समूढम् ) = सम्यक् प्रापण—निर्माण ( अस्य ) = इस परमात्मा का ही कर्म वैचित्र्य है। [ वह प्रापणे, सम् = उत्तमता से ]। प्रभु ने इन परमाणुओं से क्या विचित्र सृष्टि का निर्माण कर दिया। यही प्रभु की महिमा है। एक-एक अणु की रचना अद्भुत है, एक-एक पिण्ड आश्चर्य से परिपूर्ण है। एक-एक फल की रचना कितनी विस्मयकारक प्रतीत होती है ? उपनिषद् के शब्दों में यह सारा संसार सचमुच प्रभु का व्याख्यान कर रहा है इदं सर्वं तस्योपव्याख्यानम्। यह सारा संसार ( स्वाहा ) = सुन्दरता से उस प्रभु का प्रतिपादन कर रहा है।

    भावार्थ -

    भावार्थ — यह सारा ब्रह्माण्ड प्रभु की महिमा का प्रतिपादक है। प्रभु ने तीन लोकों में विभक्त करके इस सृष्टि की रचना की है। ये तीन लोक ही प्रभु के तीन पग हैं।

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