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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1044
ऋषिः - मेधातिथिः काण्वः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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तं꣢ त्वा꣣ म꣡दा꣢य꣣ घृ꣡ष्व꣢य उ लोककृ꣣त्नु꣡मी꣢महे । त꣢व꣣ प्र꣡श꣢स्तये म꣣हे꣢ ॥१०४४॥

स्वर सहित पद पाठ

तम् । त्वा꣣ । म꣡दा꣢꣯य । घृ꣡ष्व꣢꣯ये । उ꣣ । लोककृत्नु꣢म् । लो꣣क । कृत्नु꣢म् । ई꣣महे । त꣡व꣢꣯ । प्र꣡श꣢꣯स्तये । प्र । श꣣स्तये । म꣢हे ॥१०४४॥


स्वर रहित मन्त्र

तं त्वा मदाय घृष्वय उ लोककृत्नुमीमहे । तव प्रशस्तये महे ॥१०४४॥


स्वर रहित पद पाठ

तम् । त्वा । मदाय । घृष्वये । उ । लोककृत्नुम् । लोक । कृत्नुम् । ईमहे । तव । प्रशस्तये । प्र । शस्तये । महे ॥१०४४॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1044
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 8
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 8
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पदार्थ -

(तम्) = उस (लोककृत्नुम्) = सम्पूर्ण लोकों का निर्माण करनेवाले (त्वा) = आपसे (उ) = निश्चय से (ईमहे) = [नि० ३.१९.१ याच्या] = याचना करते हैं— १. (मदाय) = आनन्द के लिए। हमारे जीवन में एक मस्ती हो । हम सुख-दुःख में सदा प्रसन्न रह सकें । २. (घृष्वये) = कामादि शत्रुओं के धर्षण के लिए। हमारी इच्छा है कि हम उस लोक में निवास करें, जहाँ काम का संहार कर दिया गया है । ३. (तव प्रशस्तये) = तेरी प्रशस्ति के लिए। हे प्रभो! आपकी कृपा से हम आपको भूल न जाएँ, सदा आपका स्मरण करते हुए कामादि का संहार करनेवाले बनें । ४. (महे) = [महसे] तेज के लिए। आपके सम्पर्क में आकर मैं इसी प्रकार तेजस्वी हो जाऊँ जैसे अग्नि के सम्पर्क में आकर लोहा ।

भावार्थ -

हे प्रभो ! आपकी कृपा से हमारा जीवन इन चार बातों से युक्त हो– उल्लास, वासनाविजय, आपका स्मरण तथा तेजस्विता ।
 

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