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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1046
ऋषिः - मेधातिथिः काण्वः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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अ꣣स्म꣡भ्य꣢मिन्दविन्द्रि꣣यं꣡ मधोः꣢꣯ पवस्व꣣ धा꣡र꣢या । प꣣र्ज꣡न्यो꣢ वृष्टि꣣मा꣡ꣳ इ꣢व ॥१०४६॥

स्वर सहित पद पाठ

अ꣣स्म꣡भ्य꣢म् । इ꣣न्दो । इन्द्रिय꣢म् । म꣡धोः꣢꣯ । प꣣वस्व । धा꣡र꣢꣯या । प꣣र्ज꣡न्यः꣢ । पृ꣣ष्टिमा꣢न् । इ꣣व ॥१०४६॥


स्वर रहित मन्त्र

अस्मभ्यमिन्दविन्द्रियं मधोः पवस्व धारया । पर्जन्यो वृष्टिमाꣳ इव ॥१०४६॥


स्वर रहित पद पाठ

अस्मभ्यम् । इन्दो । इन्द्रियम् । मधोः । पवस्व । धारया । पर्जन्यः । पृष्टिमान् । इव ॥१०४६॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1046
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 10
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 10
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पदार्थ -

हे (इन्दो) = परमैश्वर्यशाली प्रभो! आप (मधो:) = सोम की (धारया) = धारकशक्ति के द्वारा (अस्मभ्यम्) = हमारे लिए (इन्द्रियम्) = उस-उस इन्द्रिय में काम करनेवाली इन्द्र की शक्ति को (पवस्व) - प्राप्त कराइए । आपने वस्तुत: शरीर में रस-रुधिरादि के क्रम से अन्त में वीर्य धातु की उत्पत्ति की व्यवस्था की है। इस सोम में एक अद्भुत धारणशक्ति है । ('जीवनं बिन्दुधारणात्') – ये हैं तो जीवन है, ये नहीं तो जीवन भी नहीं है। इसी के द्वारा हमारी इन्द्रियाँ शक्ति-सम्पन्न बनती हैं और हमारा जीवन सुखी [सु उत्तम ख- इन्द्रियोंवाला] होता है ।

इस प्रकार ये प्रभु हमारे लिए वृष्टिमान् पर्जन्य इव-वर्षा करनेवाले बादल के समान होते हैं। जैसे वृष्टि करनेवाला बादल गर्मी से सन्तप्त लोक को शान्ति प्राप्त कराता है, उसी प्रकार प्रभु भी इस सोम के द्वारा हमें शक्ति सम्पन्न बनाकर हमारे दुःखों को दूर करनेवाले होते हैं। 

भावार्थ -

प्रभु हमारे जीवनों को सोम के द्वारा शक्ति सम्पन्न करके सुखी कर देते हैं ।

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