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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1052
ऋषिः - हिरण्यस्तूप आङ्गिरसः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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त꣢व꣣ क्र꣢त्वा꣣ त꣢वो꣣ति꣢भि꣣र्ज्यो꣡क्प꣢श्येम꣣ सू꣡र्य꣢म् । अ꣡था꣢ नो꣣ व꣡स्य꣢सस्कृधि ॥१०५२॥

स्वर सहित पद पाठ

त꣡व꣢꣯ । क्र꣡त्वा꣢꣯ । त꣡व꣢꣯ । ऊ꣣ति꣡भिः꣢ । ज्योक् । प꣣श्येम । सू꣡र्य꣢꣯म् । अ꣡थ꣢꣯ । नः꣣ । व꣡स्य꣢꣯सः । कृ꣣धि ॥१०५२॥


स्वर रहित मन्त्र

तव क्रत्वा तवोतिभिर्ज्योक्पश्येम सूर्यम् । अथा नो वस्यसस्कृधि ॥१०५२॥


स्वर रहित पद पाठ

तव । क्रत्वा । तव । ऊतिभिः । ज्योक् । पश्येम । सूर्यम् । अथ । नः । वस्यसः । कृधि ॥१०५२॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1052
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 6
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 6
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पदार्थ -

हे प्रभो ! हम (तव क्रत्वा) = आपकी प्रेरणा से तथा (तव ऊतिभिः) = आपकी रक्षाओं से (ज्योक्) = दीर्घकाल तक (सूर्यं पश्येम) = सूर्य का दर्शन करनेवाले बनें । दीर्घकाल तक सूर्य-दर्शन यह मुहाविरा वेद में दीर्घ-जीवन के लिए आता है। ‘हम सूर्यदर्शन से विच्छिन्न न हों' - यह प्रार्थना आयुष्यसूक्तों में उपलभ्य है। यह सूर्य नाशक रक्षसों का – रोगकृमियों का नाश करनेवाला है । रोगकृमियों का नाश करके यह दीर्घजीवन का कारण बनता है। प्रभु हमें सदा सूर्यदर्शन में रहने की प्रेरणा देते हैं । वेद में उन्हीं घरों को उत्तम समझा गया है, जिनमें सूर्य किरणों का खूब प्रवेश होता है।' इस प्रकार हे प्रभो! (अथ नः वस्यसः कृधि) = आप हमारे जीवनों को श्रेष्ठ बना दीजिए।
 

भावार्थ -

सूर्य मित्र है - मृत्यु से बचानेवाला है। इस तत्त्व को समझकर हम अधिक-सेअधिक सूर्य-दर्शन में निवास करनेवाले बनें ।

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