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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1083
ऋषिः - अमहीयुराङ्गिरसः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
1

स꣢ नो꣣ भ꣡गा꣢य वा꣣य꣡वे꣢ पू꣣ष्णे꣡ प꣢वस्व꣣ म꣡धु꣢मान् । चा꣡रु꣢र्मि꣣त्रे꣡ वरु꣢꣯णे च ॥१०८३॥

स्वर सहित पद पाठ

सः । नः꣣ । भ꣡गा꣢꣯य । वा꣣य꣡वे꣢ । पू꣣ष्णे꣢ । प꣣वस्व । म꣡धु꣢꣯मान् । चा꣡रुः꣢꣯ । मि꣣त्रे꣢ । मि꣣ । त्रे꣢ । व꣡रु꣢꣯णे । च꣣ ॥१०८३॥


स्वर रहित मन्त्र

स नो भगाय वायवे पूष्णे पवस्व मधुमान् । चारुर्मित्रे वरुणे च ॥१०८३॥


स्वर रहित पद पाठ

सः । नः । भगाय । वायवे । पूष्णे । पवस्व । मधुमान् । चारुः । मित्रे । मि । त्रे । वरुणे । च ॥१०८३॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1083
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 13; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 4; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
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पदार्थ -

प्रभु इस अमहीयु से कहते हैं कि (मित्रे वरुणे च) = प्राण और अपान में (चारु:) = सुन्दर ढंग से विचरण करनेवाला, अर्थात् प्राणायाम द्वारा प्राणापान की उत्तम साधना करनेवाला (मधुमान्) = अत्यन्त माधुर्यमय जीवनवाला होकर (सः) = वह तू (न:) = हमारे (भगाय) = ऐश्वर्य के लिए (वायवे) = [वायुः=प्राणः] प्राणशक्ति के लिए तथा (पूष्णे) = पुष्टि के लिए (पवस्व) = प्राप्त हो।

‘अमहीयु' बनने के लिए पार्थिव भोगों की लिप्सा से ऊपर उठने के लिए प्राणसाधना ही एकमात्र उपाय है। इस प्राणासाधना के लाभ निम्न हैं – १. हमारा जीवन मधुर बनता है मधुमान्हमारे मनों में ईर्ष्या-द्वेष नहीं रहते । २. हम ज्ञानरूप उत्कृष्ट ऐश्वर्य को प्राप्त करनेवाले होते [भग] । ३. हमारी प्राणशक्ति ठीक होने से हम क्रियाशील बने रहते हैं—हमें आलस्य नहीं घेरता [वायु]। ४. हमारा अङ्ग-प्रत्यङ्ग सुपुष्ट बना रहता है [पूषन्] ।

भावार्थ -

प्राणसाधना के द्वारा हम 'माधुर्य, ऐश्वर्य, प्राणशक्ति व पुष्टि' प्राप्त करें ।

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