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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1085
ऋषिः - शुनःशेप आजीगर्तिः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
2
आ꣢ घ꣣ त्वा꣢वान्꣣ त्म꣡ना꣢ यु꣣क्तः꣢ स्तो꣣तृ꣡भ्यो꣢ धृष्णवीया꣣नः꣢ । ऋ꣣णो꣢꣫रक्षं꣣ न꣢ च꣣꣬क्र्योः꣢꣯ ॥१०८५॥
स्वर सहित पद पाठआ । घ꣣ । त्वा꣡वा꣢꣯न् । त्म꣡ना꣢꣯ । यु꣣क्तः꣢ । स्तो꣣तृ꣡भ्यः꣢ । धृ꣣ष्णो । ईयानः꣢ । ऋ꣣णोः꣢ । अ꣡क्ष꣢꣯म् । न । च꣣क्र्योः꣢ ॥१०८५॥
स्वर रहित मन्त्र
आ घ त्वावान् त्मना युक्तः स्तोतृभ्यो धृष्णवीयानः । ऋणोरक्षं न चक्र्योः ॥१०८५॥
स्वर रहित पद पाठ
आ । घ । त्वावान् । त्मना । युक्तः । स्तोतृभ्यः । धृष्णो । ईयानः । ऋणोः । अक्षम् । न । चक्र्योः ॥१०८५॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1085
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 14; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 5; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 14; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 5; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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विषय - आध्यात्मिक जीवन
पदार्थ -
हे (धृष्णो) = शत्रुओं का धर्षण करनेवाले प्रभो ! यह सुख-निर्माण की इच्छावाला 'शुनः शेप' (घ) = निश्चय से १. (त्वावान्) = आप-जैसा ही बना है। इसने आपके गुणों को धारण करने का प्रयत्न किया है। २. (त्मना युक्त:) = यह आत्मा से युक्त है— मनोबलवाला है। ३. (ईयान:) = यह निरन्तर क्रियाशील है, उत्तम गुणों की प्राप्ति की कामना से कर्मों में लगा हुआ है । ४. (अक्षं न चक्रयोः) = जैसे दो चक्रों में अक्ष की स्थिति होती है उसी प्रकार यह 'ज्ञान और श्रद्धा' रूप चक्रों के बीच में कर्मरूप अक्ष के समान है। इसके सब कर्म ज्ञान व श्रद्धापूर्वक किये जाते हैं। ऐसे ही व्यक्ति तो तेरे सच्चे स्तोता हैं । इन (स्तोतृभ्यः) = स्तोताओं के लिए हे प्रभो ! आप (आऋणोः) = काम-क्रोधादि वासनाओं पर आक्रमण करते हैं। आपकी कृपा से सब वासनारूप विघ्नों का नाश होकर इनकी जीवन-यात्रा ठीकरूप से पूर्ण होती है और यह स्तोता अपने घर को [गर्त – गृह – नि० ३.४] जानेवाला [अज] 'आजीगर्ति' होता है। ‘गर्त: पुरुष: ' श० ५.४.१.१५ के अनुसार गर्त का अर्थ पुरुष=परमात्मा भी है। यह परमात्मा को प्राप्त करनेवाला ‘आजीगर्ति' सच्चे सुख को प्राप्त करके 'शुन:शेप' नाम को सार्थक कर पाया है।
भावार्थ -
१. हम प्रभु-जैसे बनें, २. आत्मबल से युक्त हों, ३. क्रियाशील बनें, ४. श्रद्धा और ज्ञानपूर्वक कर्म करें, ५. इस प्रकार प्रभु के सच्चे स्तोता हों।
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