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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1089
ऋषिः - मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
4
अ꣡था꣢ ते꣣ अ꣡न्त꣢मानां वि꣣द्या꣡म꣢ सुमती꣣ना꣢म् । मा꣢ नो꣣ अ꣡ति꣢ ख्य꣣ आ꣡ ग꣢हि ॥१०८९॥
स्वर सहित पद पाठअ꣡थ꣢꣯ । ते꣣ । अ꣡न्त꣢꣯मानाम् । वि꣣द्या꣡म꣢ । सु꣣मतीना꣢म् । सु꣣ । मतीना꣢म् । मा । नः꣣ । अ꣡ति꣢꣯ । ख्यः꣣ । आ꣢ । ग꣣हि ॥१०८९॥
स्वर रहित मन्त्र
अथा ते अन्तमानां विद्याम सुमतीनाम् । मा नो अति ख्य आ गहि ॥१०८९॥
स्वर रहित पद पाठ
अथ । ते । अन्तमानाम् । विद्याम । सुमतीनाम् । सु । मतीनाम् । मा । नः । अति । ख्यः । आ । गहि ॥१०८९॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1089
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 15; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 5; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 15; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 5; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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विषय - मधुच्छन्दा की सर्वमधुर इच्छा
पदार्थ -
‘मधुच्छन्दाः’ प्रभु से प्रार्थना करता है— हे प्रभो ! १. (अथ) = अब हम (ते) - आपकी अन्तमानाम्अति समीपवर्ती (सुमतीनाम्) = कल्याणी मतियों को (विद्याम) = जानें । आप तो हमारे हृदय में ही स्थित हो, अतः आपकी कल्याणी मति हमारे अन्तिकतम ही है । हम हृदय के मालिन्य के कारण उसे जान नहीं पाते । आपकी कृपा से हम उस बुद्धि के प्रकाश को देखनेवाले हों । २. हे प्रभो ! नः=हमारा मा= मत अतिख्यः - उल्लंघन कीजिए- हमारा निराकरण मत कीजिए, आगहि- आप हमें अवश्य प्राप्त होओ।
भावार्थ -
हम प्रभु की कल्याणी मति को प्राप्त करनेवाले हों ।
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