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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1121
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
1
रा꣡जा꣢नो꣣ न꣡ प्रश꣢꣯स्तिभिः꣣ सो꣡मा꣢सो꣣ गो꣡भि꣢रञ्जते । य꣣ज्ञो꣢꣫ न स꣣प्त꣢ धा꣣तृ꣡भिः꣢ ॥११२१॥
स्वर सहित पद पाठरा꣡जा꣢꣯नः । न । प्र꣡श꣢꣯स्तिभिः । प्र । श꣣स्तिभिः । सो꣡मा꣢꣯सः । गो꣡भिः꣢꣯ । अ꣣ञ्जते । यज्ञः꣢ । न । स꣣प्त꣢ । धा꣣तृ꣡भिः꣢ ॥११२१॥
स्वर रहित मन्त्र
राजानो न प्रशस्तिभिः सोमासो गोभिरञ्जते । यज्ञो न सप्त धातृभिः ॥११२१॥
स्वर रहित पद पाठ
राजानः । न । प्रशस्तिभिः । प्र । शस्तिभिः । सोमासः । गोभिः । अञ्जते । यज्ञः । न । सप्त । धातृभिः ॥११२१॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1121
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 6
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 6
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 6
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 6
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विषय - विनीत व ज्ञानी
पदार्थ -
(राजानः न) = राजा लोग जैसे [न=इव] (प्रशस्तिभिः) = शास्त्रीय नियमों [Rules for guidance] से (अञ्जते) = अपने को अलंकृत करते हैं (यज्ञः न) = जैसे यज्ञ सप्त (धातृभिः) = सप्तर्षियों से अलंकृत होता
है, उसी प्रकार (सोमासः) = विनीत पुरुष (गोभिः) = वेदवाणियों से (अञ्जते) = अपने को अलंकृत करते हैं । राजा का अपना एक विशेष महत्त्व है, परन्तु यदि यह शास्त्र में वर्णित नियमों के अनुसार अपना जीवन बनाता है तो उसकी विशेष ही शोभा होती है। ठीक इसी प्रकार यज्ञ स्वयं बड़ी पवित्र वस्तु है, परन्तु यदि वहाँ सप्तर्षियों की – सातों विद्वान् पुरुषों की उपस्थिति हो तो उस यज्ञ का महत्त्व बहुत बढ़ जाता है । इसी प्रकार सोम-विनीत पुरुष उत्तम जीवनवाला है ही। जब वह वेदवाणियों को अपना लेता है तब उसके जीवन में और अधिक सौन्दर्य आ जाता है ।
भावार्थ -
धनी होते हुए हमारा जीवन शास्त्रविधि के अनुकूल हो । विनीत होते हुए हम वेदवाणियों से जीवन को अलंकृत करें । विद्वानों की उपस्थिति से हमारे यज्ञों की शोभा बढ़े ।
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