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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1123
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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आ꣣पाना꣡सो꣢ वि꣣व꣡स्व꣢तो꣣ जि꣡न्व꣢न्त उ꣣ष꣢सो꣣ भ꣡ग꣢म् । सू꣢रा꣣ अ꣢ण्वं꣣ वि꣡ त꣢न्वते ॥११२३॥

स्वर सहित पद पाठ

आ꣣पाना꣡सः꣢ । वि꣣व꣡स्व꣢तः । वि꣣ । व꣡स्व꣢꣯तः । जि꣡न्व꣢꣯न्तः । उ꣣ष꣡सः꣢ । भ꣡ग꣢꣯म् । सू꣡राः꣢꣯ । अ꣡ण्व꣢꣯म् । वि । त꣣न्वते ॥११२३॥


स्वर रहित मन्त्र

आपानासो विवस्वतो जिन्वन्त उषसो भगम् । सूरा अण्वं वि तन्वते ॥११२३॥


स्वर रहित पद पाठ

आपानासः । विवस्वतः । वि । वस्वतः । जिन्वन्तः । उषसः । भगम् । सूराः । अण्वम् । वि । तन्वते ॥११२३॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1123
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 8
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 8
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पदार्थ -

(आपानास:) = सोम का सर्वथा पान करनेवाले, अर्थात् सोम को सर्वथा शरीर में ही व्याप्त करनेवाले (सूरा:) = विद्वान् लोग (विवस्वत:) = सूर्य के और (उषस:) = उषा के (भगम्) = ऐश्वर्य को (जिन्वन्तः) = अपने
अन्दर प्रेरित करते हुए (अण्वम्) = सूक्ष्म बौद्धिक व आत्मिक शक्तियों को (वितन्वते) = विस्तृत करते हैं। १. सोमपान से – वीर्यशक्ति को शरीर में ही सुरक्षित रखने से शरीर तो सृदृढ़ बनता ही है, इन्द्रियों की शक्ति के विकास के साथ बुद्धि भी सूक्ष्म बनती है और उस सूक्ष्म बुद्धि से आत्मतत्त्व का दर्शन होता है। एवं, सोमपान करनेवाले लोग बौद्धिक व आत्मिक शक्तियों का विकास करते हैं । २. ये अपने अन्दर सूर्य के ऐश्वर्य को प्रेरित करते हैं, अर्थात् प्राणशक्ति को बढ़ाते हैं । ('प्राणः प्रजानामुदयत्येषः सूर्यः'), यह सूर्य क्या उदय होता है, यह तो प्रजाओं का प्राण ही है । ३. उषा का ऐश्वर्य अन्धकार का दहन [उष+दाहे] है। यह तम को दूर करती है । एवं, सोमपान से मानस अन्धकार दूर होकर राग-द्वेषादि दूर हो जाते हैं ।

भावार्थ -

सोमपान से प्राणाशक्ति बढ़ती है, मानस राग-द्वेषादि दूर होते हैं, बौद्धिक व आत्मिक शक्तियों का विकास होता है ।

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