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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1125
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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स꣣मीचीना꣡स꣢ आशत꣣ हो꣡ता꣢रः स꣣प्त꣡जा꣢नयः । प꣣द꣡मे꣢꣯कस्य꣣ पि꣡प्र꣢तः ॥११२५॥

स्वर सहित पद पाठ

स꣣मीचीना꣡सः꣢ । स꣣म् । ईचीना꣡सः꣢ । आ꣣शत । हो꣡ता꣢꣯रः । स꣣प्त꣡जा꣢नयः । स꣣प्त꣢ । जा꣣नयः । पद꣢म् । ए꣡क꣢꣯स्य । पि꣡प्र꣢꣯तः ॥११२५॥


स्वर रहित मन्त्र

समीचीनास आशत होतारः सप्तजानयः । पदमेकस्य पिप्रतः ॥११२५॥


स्वर रहित पद पाठ

समीचीनासः । सम् । ईचीनासः । आशत । होतारः । सप्तजानयः । सप्त । जानयः । पदम् । एकस्य । पिप्रतः ॥११२५॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1125
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 10
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 10
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पदार्थ -

(एकस्य) = उस अद्वैत [स एक एकवृदेक एव] (पिप्रतः) = सारे ब्रह्माण्ड में व्याप्त प्रभु के (पदम्) = स्थान को (आशत) = प्राप्त करते हैं। कौन ? १. (समीचीनास:) = [सम् अञ्च्] उत्तम गतिवाले= प्रत्येक कार्य
को सदा सद्भाव से सम्यक्तया करनेवाले, ३. (होतार:) = दान देनेवाले- दानपूर्वक अदन करनेवाले, यज्ञशेष खानेवाले ३. (सप्तजानय:) = पाँच इन्द्रियशक्तियाँ तथा मन और बुद्धि जिनकी जाया के समान हैं। पत्नी शक्ति का प्रतीक समझी जाती हैं, जैसे इन्द्राणी इन्द्र की शक्ति है । इसी प्रकार प्रभु के पद को वे पाते हैं, जो इन इन्द्रियों, मन व बुद्धि की शक्ति से युक्त । 

भावार्थ -

उत्तम गतिवाले, दाता, सातों शक्तियों का विकास करनेवाले प्रभु को पाते हैं ।

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