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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1160
ऋषिः - अग्नयो धिष्ण्या ऐश्वराः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - द्विपदा विराट् स्वरः - पञ्चमः काण्ड नाम -
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प्र꣢ वा꣣꣬ज्य꣢꣯क्षाः स꣣ह꣡स्र꣢धारस्ति꣣रः꣢ प꣣वि꣢त्रं꣣ वि꣢꣫ वार꣣म꣡व्य꣢म् ॥११६०॥

स्वर सहित पद पाठ

प्र꣢ । वा꣣जी꣢ । अ꣣क्षारि꣡ति꣢ । स꣣ह꣡स्र꣢धारः । स꣣ह꣡स्र꣢ । धा꣣रः । तिरः꣢ । प꣣वि꣡त्र꣢म् । वि । वा꣡र꣢꣯म् । अ꣡व्य꣢꣯म् ॥११६०॥


स्वर रहित मन्त्र

प्र वाज्यक्षाः सहस्रधारस्तिरः पवित्रं वि वारमव्यम् ॥११६०॥


स्वर रहित पद पाठ

प्र । वाजी । अक्षारिति । सहस्रधारः । सहस्र । धारः । तिरः । पवित्रम् । वि । वारम् । अव्यम् ॥११६०॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1160
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 10; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 5; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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पदार्थ -

[क] (वाजी) = बलवाला, [ख] (सहस्रधारः) = [स-हस्र, धारा - वाणी] सदा आनन्दमय मधुर वाणीवाला उस प्रभु की ओर (प्र अक्षाः) = [प्रकर्षेण क्षरति धावति] तेजी से बढ़ चलता है, जो प्रभु - १. (तिरः) = उसके ही अन्दर छिपे हुए हैं, २. (पवित्रम्) = उसके जीवन को पवित्र बनानेवाले हैं, ३. (विवारम्) = विशेषरूप में हमारी वासनाओं का निवारण करनेवाले हैं और ४. (अव्यम्) = रक्षण में उत्तम हैं।

इस मन्त्र में प्रभु-प्राप्ति के दो साधनों का उल्लेख है – १. शक्ति और २. मधुर वाणी - इन दो साधनों से हम उस प्रभु को प्राप्त करते हैं जो प्रभु हमारे ही अन्दर अन्तर्हित हैं, पवित्र हैं, वरणीय हैं और रक्षक हैं ।

भावार्थ -

हम शक्ति और माधुर्य के मेल से प्रभु को प्राप्त करनेवाले बनें ।

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