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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1165
ऋषिः - भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्भार्गवो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
4

ते꣡ नो꣢ वृ꣣ष्टिं꣢ दि꣣व꣢꣫स्परि꣣ प꣡व꣢न्ता꣣मा꣢ सु꣣वी꣡र्य꣢म् । स्वा꣣ना꣢ दे꣣वा꣢स꣣ इ꣡न्द꣢वः ॥११६५॥

स्वर सहित पद पाठ

ते । नः꣣ । वृष्टि꣢म् । दि꣣वः꣢ । प꣡रि꣢꣯ । प꣡व꣢꣯न्ताम् । आ । सु꣣वी꣡र्य꣢म् । सु꣣ । वी꣡र्य꣢꣯म् । स्वा꣣नाः꣢ । दे꣣वा꣡सः꣢ । इ꣡न्द꣢꣯वः ॥११६५॥


स्वर रहित मन्त्र

ते नो वृष्टिं दिवस्परि पवन्तामा सुवीर्यम् । स्वाना देवास इन्दवः ॥११६५॥


स्वर रहित पद पाठ

ते । नः । वृष्टिम् । दिवः । परि । पवन्ताम् । आ । सुवीर्यम् । सु । वीर्यम् । स्वानाः । देवासः । इन्दवः ॥११६५॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1165
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 11; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 5; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
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पदार्थ -

१. (ते) = वे सोम (नः) = हमारे लिए (दिवः परि) = द्युलोक से (वृष्टिम्) = वृष्टि को (पवन्ताम्) = प्राप्त कराएँ । शरीर में मस्तिष्करूप द्युलोक में 'सहस्रारचक्र' है। यहीं से धर्ममेघ समाधि में आनन्द की वर्षा होती है। इस आनन्द की वर्षा के लिए सोम को शरीर में ही सुरक्षित रखना आवश्यक है। २. ये सोम (सुवीर्यम्) = उत्तम शक्ति को (आ) =  [पवन्ताम्] = शरीर में चारों ओर प्राप्त कराएँ । सोम की रक्षा का परिणाम यह होता है कि अङ्ग-प्रत्यङ्ग शक्तिशाली बनता है । ३. (स्वाना:) = [सु आनयन्ति]=ये सोम उत्तम प्राणशक्ति प्राप्त कराते हैं - जीवन को सोत्साह बनाते हैं । ४. (देवासः) = ये सोम हमें दिव्यगुण-सम्पन्न करके देव बनाते हैं । ५. (इन्दवः) = ये सोम हमें ज्ञान का परमैश्वर्य प्राप्त कराते हैं । 

भावार्थ -

हम सोम-निर्माण के प्रयोजन को समझकर इसे सुरक्षित रखने का पूर्ण प्रयत्न करें।

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