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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1183
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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पु꣣नानः꣢ क꣣ल꣢शे꣣ष्वा꣡ वस्त्रा꣢꣯ण्यरु꣣षो꣡ हरिः꣢꣯ । प꣢रि꣣ ग꣡व्या꣢न्यव्यत ॥११८३॥

स्वर सहित पद पाठ

पुनानः꣢ । क꣣ल꣡शे꣢षु । आ । व꣡स्त्रा꣢꣯णि । अ꣣रुषः꣢ । ह꣡रिः꣢꣯ । प꣡रि꣢꣯ । ग꣡व्या꣢꣯नि । अ꣣व्यत ॥११८३॥


स्वर रहित मन्त्र

पुनानः कलशेष्वा वस्त्राण्यरुषो हरिः । परि गव्यान्यव्यत ॥११८३॥


स्वर रहित पद पाठ

पुनानः । कलशेषु । आ । वस्त्राणि । अरुषः । हरिः । परि । गव्यानि । अव्यत ॥११८३॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1183
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 6
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 6
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पदार्थ -

मानव शरीर में सोलह कलाएँ हैं, अतः यह शरीर 'कलश' कहलाता है। सोम-शक्ति इस शरीर-कलश को बड़ा सुन्दर बनाए रखती है । मन्त्र में कहते हैं – (कलशेषु) = इन शरीरों में (वस्त्राणि) = स्थूल, सूक्ष्म व कारणशरीररूप वस्त्रों को (आपुनानः) = सर्वथा पवित्र करते हुए (अरुषः) = रोगों व अशुभ वृत्तियों से इन्हें नष्ट न होने देनेवाला (हरिः) = सब मलों व रोगों का हरण करनेवाला यह सोम (गव्यानि) = इन्द्रियों की शक्तियों को (परि अव्यत) = सुरक्षित करता है । अथवा (गव्यानि) = वेदवाणियों को (परि अव्यत) = सम्यक् ज्ञात कराता है। सोम से शक्ति की रक्षा भी होती है और ज्ञान की वृद्धि भी ।
 

भावार्थ -

सोम हमारी है शक्तियों को बढ़ाता ।

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