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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1187
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
3
सो꣡मः꣢ पुना꣣नो꣡ अ꣢र्षति स꣣ह꣡स्र꣢धारो꣣ अ꣡त्य꣢विः । वा꣣यो꣡रिन्द्र꣢꣯स्य निष्कृ꣣त꣢म् ॥११८७॥
स्वर सहित पद पाठसो꣡मः꣢꣯ । पु꣣नानः꣢ । अ꣣र्षति । स꣣ह꣡स्र꣢धारः । स꣣ह꣡स्र꣢ । धा꣣रः । अ꣡त्य꣢꣯विः । अ꣡ति꣢꣯ । अ꣣विः । वायोः꣢ । इ꣡न्द्र꣢꣯स्य । नि꣣ष्कृत꣢म् । निः꣣ । कृत꣢म् ॥११८७॥
स्वर रहित मन्त्र
सोमः पुनानो अर्षति सहस्रधारो अत्यविः । वायोरिन्द्रस्य निष्कृतम् ॥११८७॥
स्वर रहित पद पाठ
सोमः । पुनानः । अर्षति । सहस्रधारः । सहस्र । धारः । अत्यविः । अति । अविः । वायोः । इन्द्रस्य । निष्कृतम् । निः । कृतम् ॥११८७॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1187
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
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विषय - प्रभु को कौन प्राप्त करता है ?
पदार्थ -
(वायोः) = सारे संसार को गति देनेवाले (इन्द्रस्य) = सम्पूर्ण ऐश्वर्य के स्वामी प्रभु के (निष्कृतम्) = परिष्कृत स्थान को (अर्षति) = प्राप्त होता है । कौन ? १. (सोमः) = सोमपान करनेवाला, अतएव शक्ति का पुञ्ज तथा सौम्य स्वभाववाला पुरुष । जो शक्ति को अपने अन्दर सुरक्षित नहीं करते वे शक्तिशाली तो क्या बनेंगे, उनका स्वभाव भी सौम्य नहीं होता। २. (पुनानः) = जो सोमरक्षा के द्वारा अपने जीवन को पवित्र बनाता है, ३. (सहस्त्रधारः) = [धारा = वाङ् ] = शतशः स्तुति-वाणियोंवाला होता है और सबसे बड़ी बात यह है कि ४. (अत्यविः) = [अव्-कान्ति= इच्छा] = इच्छों को जो लांघ गया होता है, अर्थात् जो निष्काम बनता है ।
भावार्थ -
हम सौम्य, पवित्र, स्तोता व निष्काम बनकर प्रभु के धाम को प्राप्त करें।
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