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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1198
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
2
म꣣दच्यु꣡त्क्षे꣢ति꣣ सा꣡द꣢ने꣣ सि꣡न्धो꣢रू꣣र्मा꣡ वि꣢प꣣श्चि꣢त् । सो꣡मो꣢ गौ꣣री꣡ अधि꣢꣯ श्रि꣣तः꣢ ॥११९८॥
स्वर सहित पद पाठम꣣दच्यु꣢त् । म꣣द । च्यु꣢त् । क्षे꣣ति । सा꣡द꣢꣯ने । सि꣡न्धोः꣢꣯ । ऊ꣣र्मा꣢ । वि꣣पश्चि꣢त् । वि꣣पः । चि꣢त् । सो꣡मः꣢꣯ । गौ꣣री꣡इति꣢ । अ꣡धि꣢꣯ । श्रि꣣तः꣢ ॥११९८॥
स्वर रहित मन्त्र
मदच्युत्क्षेति सादने सिन्धोरूर्मा विपश्चित् । सोमो गौरी अधि श्रितः ॥११९८॥
स्वर रहित पद पाठ
मदच्युत् । मद । च्युत् । क्षेति । सादने । सिन्धोः । ऊर्मा । विपश्चित् । विपः । चित् । सोमः । गौरीइति । अधि । श्रितः ॥११९८॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1198
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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विषय - मद- च्युत्
पदार्थ -
(मद- च्युत्) = गर्व न करनेवाला (विपश्चित्) = वस्तुतत्त्वों को देखकर विशेषरूप से चिन्तन करनेवाला विद्वान् (सादने) = वासनाओं को विनष्ट कर देने पर (सिन्धोः) = [स्यन्दमाना: अपः = रेतः] सामान्यतः निम्नदेश [नीचे] की ओर बहनेवाले जलों – रेतः कणों के (ऊर्मों) = ऊर्ध्वगति [upward flow] में क्(षेति) = निवास करता है । जब मनुष्य चिन्तनशील बनता है तब सामान्यतः वासनाओं का शिकार नहीं होता। शरीर में उत्पन्न सोम का विलास में व्यय न कर उसकी ऊर्ध्वगतिवाला होता है और एक अद्भुत आनन्द का अनुभव करता है। उस समय यह मद को, विषयों को छोड़ देता है। यह विषयमद उसके लिए तुच्छ हो जाता है ।
(सोमः) = सोम की रक्षा के द्वारा सौम्य स्वभाव बना हुआ यह ज्ञानी अपने अधिक-से-अधिक समय में (गौरी अधि) =[गौरी=वाङ्नाम–नि० १.११.५] वाणी में, वेदवाणी के अध्ययन में (श्रितः) = लगा होता है। यह अपना अधिक-से-अधिक समय ज्ञानोपार्जन में बिताता है ।
भावार्थ -
१. हम शरीर में सोम की ऊर्ध्वगतिवाले हों, २. मद से रहित होकर सौम्य बनें । ३. अपना समय ज्ञानोपार्जन में बिताएँ ।
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