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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1208
ऋषिः - उचथ्य आङ्गिरसः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
3
आ꣡ प꣢वस्व मदिन्तम प꣣वि꣢त्रं꣣ धा꣡र꣢या कवे । अ꣣र्क꣢स्य꣣ यो꣡नि꣢मा꣣स꣡द꣢म् ॥१२०८॥
स्वर सहित पद पाठआ । प꣣वस्व । मदिन्तम । पवि꣡त्र꣢म् । धा꣡र꣢꣯या । क꣣वे । अ꣣र्क꣡स्य꣢ । यो꣡नि꣢꣯म् । आ꣣स꣡द꣢म् । आ । सदम् ॥१२०८॥
स्वर रहित मन्त्र
आ पवस्व मदिन्तम पवित्रं धारया कवे । अर्कस्य योनिमासदम् ॥१२०८॥
स्वर रहित पद पाठ
आ । पवस्व । मदिन्तम । पवित्रम् । धारया । कवे । अर्कस्य । योनिम् । आसदम् । आ । सदम् ॥१२०८॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1208
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 5; मन्त्र » 4
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 4; सूक्त » 1; मन्त्र » 4
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 5; मन्त्र » 4
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 4; सूक्त » 1; मन्त्र » 4
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विषय - वेदवाणी के अनुसार चलना
पदार्थ -
हे (मदिन्तम) = हे अत्यन्त प्रसन्न स्वभाववाले ! (कवे) = क्रान्तदर्शिन् ! तू (अर्कस्य) = अर्चनीय प्रभु के (योनिम्) = पवित्र स्थान को (आसदम्) = प्राप्त करने के लिए (धारया) = वेदवाणी के अनुसार [ धारा-वाणीवेदवाणी] (आपवस्व) = सर्वथा गतिशील हो । तेरे सारे कार्य वेद के निर्देशानुसार हों ।
भावार्थ -
मनुष्य को चाहिए कि १. वह प्रसन्न मनोवृत्तिवाला हो, २. क्रान्तदर्शी बने, तत्त्व का द्रष्टा हो तथा ३. वेद के अनुसार अपने जीवन को बनाए, तभी वह उस अर्चनीय प्रभु के पवित्र स्थान को प्राप्त करेगा ।
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