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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1215
ऋषिः - अहमीयुराङ्गिरसः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
3
न꣡ त्वा꣢ श꣣तं꣢ च꣣ न꣢꣫ ह्रुतो꣣ रा꣢धो꣣ दि꣡त्स꣢न्त꣣मा꣡ मि꣢नन् । य꣡त्पु꣢ना꣣नो꣡ म꣢ख꣣स्य꣡से꣢ ॥१२१५॥
स्वर सहित पद पाठन । त्वा꣣ । शत꣢म् । च꣣ । न꣢ । ह्रु꣡तः꣢꣯ । रा꣡धः꣢꣯ । दि꣡त्स꣢꣯न्तम् । आ । मि꣣नन् । य꣢त् । पु꣣नानः꣢ । म꣣खस्य꣡से꣢ ॥१२१५॥
स्वर रहित मन्त्र
न त्वा शतं च न ह्रुतो राधो दित्सन्तमा मिनन् । यत्पुनानो मखस्यसे ॥१२१५॥
स्वर रहित पद पाठ
न । त्वा । शतम् । च । न । ह्रुतः । राधः । दित्सन्तम् । आ । मिनन् । यत् । पुनानः । मखस्यसे ॥१२१५॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1215
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 7; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 5; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 7; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 5; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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विषय - पवित्रता, यज्ञ व दान
पदार्थ -
प्रभु 'अमहीयु' से कहते हैं कि १. (यत्) = जब (पुनान:) = अपने जीवन को पवित्र बनाता हुआ २. (मखस्यसे) = तू यज्ञों को करना चाहता है तब ३. (राधः) = धनों को (दित्सन्तम्) = देने की इच्छावाले (त्वा) = तुझे (शतम्) = सैकड़ों (ह्रुतः) = कुटिल भावनाएँ (चन) = भी न (आमिनन्) = हिंसित नहीं करतीं। = हमारे जीवन में सदा शतश: कुटिल भावनाएँ हमारे मनों पर आक्रमण कर रही हैं। इनसे बचने का उपाय यही है कि १. हम सदा अपने को पवित्र बनाने का ध्यान करें २. यज्ञ करने की कामनावाले हों तथा ३. सदा देने की इच्छावाले हों । पवित्रता, यज्ञ व दान के विचार ही हमारी अशुभों से रक्षा करते हैं ।
भावार्थ -
हम पवित्र बनें, यज्ञ की कामनावाले हों, अपने में दान की भावना को जगाएँ ।
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