Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1219
ऋषिः - वसिष्ठो मैत्रावरुणिः
देवता - अग्निः
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
काण्ड नाम -
2
अ꣣ग्निं꣡ वो꣢ दे꣣व꣢म꣣ग्नि꣡भिः꣢ स꣣जो꣢षा꣣ य꣡जि꣢ष्ठं दू꣣त꣡म꣢ध्व꣣रे꣡ कृ꣢णुध्वम् । यो꣡ मर्त्ये꣢꣯षु꣣ नि꣡ध्रु꣢विरृ꣣ता꣢वा꣣ त꣡पु꣢र्मूर्धा घृ꣣ता꣡न्नः꣢ पाव꣣कः꣢ ॥१२१९॥
स्वर सहित पद पाठअ꣡ग्नि꣢म् । वः꣣ । देव꣢म् । अ꣣ग्नि꣡भिः꣢ । स꣣जो꣡षाः꣢ । स꣣ । जो꣣षाः꣢꣯ । य꣡जि꣢꣯ष्ठम् । दू꣣त꣢म् । अ꣣ध्वरे꣢ । कृ꣣णुध्वम् । यः꣢ । म꣡र्त्ये꣢꣯षु । नि꣡ध्रु꣢꣯विः । नि । ध्रु꣣विः । ऋता꣡वा꣢ । त꣡पु꣢꣯र्मूर्धा । त꣡पुः꣢꣯ । मू꣣र्धा । घृ꣡तान्नः꣢ । घृ꣣त꣢ । अ꣣न्नः । पावकः ॥१२१९॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्निं वो देवमग्निभिः सजोषा यजिष्ठं दूतमध्वरे कृणुध्वम् । यो मर्त्येषु निध्रुविरृतावा तपुर्मूर्धा घृतान्नः पावकः ॥१२१९॥
स्वर रहित पद पाठ
अग्निम् । वः । देवम् । अग्निभिः । सजोषाः । स । जोषाः । यजिष्ठम् । दूतम् । अध्वरे । कृणुध्वम् । यः । मर्त्येषु । निध्रुविः । नि । ध्रुविः । ऋतावा । तपुर्मूर्धा । तपुः । मूर्धा । घृतान्नः । घृत । अन्नः । पावकः ॥१२१९॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1219
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 9; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 6; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 9; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 6; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
Acknowledgment
विषय - अग्नि नेता
पदार्थ -
हे मनुष्यो ! (अध्वरे) = अपने इस जीवन-यज्ञ में (दूतम्) = [वारयतेर्वा – नि० ५.१] दुर्मार्ग से निवर्तक नेता (कृणुध्वम्) = बनाओ । किसे ? १. (अग्निम्) = जो आगे ले चलनेवाला है, २. (वः देवम्) = तुम्हारे लिए प्रकाश का प्रदर्शक है [देव: दीपनाद् द्योतनात् – नि०], ३. (यजिष्ठम्) = अधिक-से-अधिक सङ्गति व ऐक्य पैदा करनेवाला है, ४. (यः) = जो (अग्निभिः सजोषाः) = उन्नतिशील व्यक्तियों के साथ सदा प्रेमपूर्वक बर्त्तनेवाला है।५. (मर्त्येषु निध्रुविः) = मनुष्यों में निश्चय से स्थिर मतिवाला है, विषयों से जिसकी बुद्धि आन्दोलित नहीं होती । ६. (ऋतावा) = जो ऋत का (अवन) = रक्षण करनेवाला है अथवा ऋतावान्—ऋतवाला है, अर्थात् जीवन में एकदम सत्यगतिवाला है । ७. (तपुः) = तीव्र तपस्यामय जीवनवाला है, ८. (मूर्धा) = सब लोकों के शिखर पर स्थित होनेवाला है । ९. (घृतान्न:) = मलों को दूर करके दीप्ति देनेवाले सात्त्विक अन्नों का सेवन करनेवाला है और १०. (पावकः) = अपने जीवन को इस सात्त्विक अन्न से पवित्र रखनेवाला है ।
ऐसे ही व्यक्ति को हमें अपने जीवन मार्ग में पथ-प्रदर्शक बनाना चाहिए । इसी पर हमारी जीवन-यात्रा की पूर्ति व अपूर्ति निर्भर करती है ।
भावार्थ -
हमें उल्लिखित दस गुणों से विशिष्ट पथ-प्रदर्शक प्राप्त हो, जिससे हमारी जीवनयात्रा उत्तमता से पूर्ण हो।
इस भाष्य को एडिट करें