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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1229
ऋषिः - कविर्भार्गवः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - जगती स्वरः - निषादः काण्ड नाम -
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शू꣢रो꣣ न꣡ ध꣢त्त꣣ आ꣡यु꣢धा꣣ गभस्त्योः꣣ स्वाः꣢३ सि꣡षा꣢सन्रथि꣣रो꣡ गवि꣢꣯ष्टिषु । इ꣡न्द्र꣢स्य꣣ शु꣡ष्म꣢मी꣣र꣡य꣢न्नप꣣स्यु꣢भि꣣रि꣡न्दु꣢र्हिन्वा꣣नो꣡ अ꣢ज्यते मनी꣣षि꣡भिः꣢ ॥१२२९॥

स्वर सहित पद पाठ

शू꣡रः꣢꣯ । न । ध꣣त्ते । आ꣡यु꣢꣯धा । ग꣡भ꣢꣯स्त्योः । स्वाऽ३रि꣡ति꣢ । सि꣡षा꣢꣯सन् । र꣣थिरः꣢ । ग꣡वि꣢꣯ष्टिषु । गोइ꣣ष्टिषु । इ꣡न्द्र꣢꣯स्य । शु꣡ष्म꣢꣯म् । ई꣣र꣡य꣢न् । अ꣣पस्यु꣡भिः꣢ । इ꣡न्दुः꣢꣯ । हि꣣न्वानः꣢ । अ꣣ज्यते । मनीषि꣡भिः꣢ ॥१२२९॥


स्वर रहित मन्त्र

शूरो न धत्त आयुधा गभस्त्योः स्वाः३ सिषासन्रथिरो गविष्टिषु । इन्द्रस्य शुष्ममीरयन्नपस्युभिरिन्दुर्हिन्वानो अज्यते मनीषिभिः ॥१२२९॥


स्वर रहित पद पाठ

शूरः । न । धत्ते । आयुधा । गभस्त्योः । स्वाऽ३रिति । सिषासन् । रथिरः । गविष्टिषु । गोइष्टिषु । इन्द्रस्य । शुष्मम् । ईरयन् । अपस्युभिः । इन्दुः । हिन्वानः । अज्यते । मनीषिभिः ॥१२२९॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1229
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 12; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 7; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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पदार्थ -

प्रस्तुत मन्त्र का ऋषि ‘कवि भार्गव' है—क्रान्तदर्शी व्यक्ति जिसने तपस्या से अपना परिपाक किया है। यह १. (शूर: न) = शत्रुओं को नष्ट करनेवाले शूरवीर पुरुष की भाँति (गभस्त्योः) = सूर्य और चन्द्रमा की किरणों के समान ज्ञान और विज्ञान के प्रकाशरूप (आयुधा) = शस्त्रों को (धत्त) = धारण करता है। विज्ञान के प्रकाश की किरणें मृत्यु को दूर करेंगी तो ज्ञान की किरणें कामादि शत्रुओं का संहार करके मोक्ष को प्राप्त करानेवाली होंगी । २. (स्वः) = मोक्षसुख को (सिषासन्) = प्राप्त करने की इच्छावाला यह (गविष्टिषु) = ज्ञान यज्ञों में (रथिर:) = उत्तम रथवाला होता है। शरीररूप रथ को ठीकठीक रखता हुआ यह ज्ञानयज्ञों में उपस्थित होता है। ज्ञान को प्राप्त करके मोक्ष का लाभ करना चाहता है। ३. यह अपने अन्दर (इन्द्रस्य शुष्मम्) = प्रभु की शक्ति को (ईरयन्) = प्रेरित करता है। प्रात:सायं प्रभु के साथ अपना सम्पर्क स्थापित करता हुआ प्रभु की शक्ति से अपने को शक्ति सम्पन्न करता है। ४. (इन्दुः) = प्रभु की शक्ति से शक्तिशाली बना हुआ यह ‘कवि भार्गव' (अपस्युभिः) = [: = उत्तम कर्मों की अभिलाषावाले (मनीषिभिः) = विद्वानों से (हिन्वानः) = सत्कर्मों में प्रेरित किया जाता हुआ (अज्यते) = सद्गुणों से अलंकृत किया जाता है ।

यहाँ मन्त्र में ‘अपस्युभिः' मनीषिभिः शब्दों से कर्म और ज्ञान का समुच्चय संकेतित होता है । कर्म हममें शक्ति को पैदा करते हैं तो ज्ञान सद्गुणों से हमें अलंकृत करते हैं। 

भावार्थ -

जीवन-संग्राम में ज्ञान-विज्ञान का प्रकाश ही हमारा शस्त्र हो । २. हम शरीररूप रथ को उत्तम बनाकर ज्ञानयज्ञों में विचरण करते हुए मोक्ष का लाभ करें । ३. प्रभु के सम्पर्क से शक्तिशाली बनें, और ४. उत्तम कर्मों में प्रेरित होकर जीवन को सद्गुणों से अलंकृत करें ।
 

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