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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1240
ऋषिः - अम्बरीषो वार्षागिर ऋजिश्वा भारद्वाजश्च
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
काण्ड नाम -
4
प꣢रि꣣ स्य꣢ स्वा꣣नो꣡ अ꣢क्षर꣣दि꣢न्दु꣣र꣢व्ये꣣ म꣡द꣢च्युतः । धा꣢रा꣣ य꣢ ऊ꣣र्ध्वो꣡ अ꣢ध्व꣣रे꣢ भ्रा꣣जा꣡ न याति꣢꣯ गव्य꣣युः꣢ ॥१२४०॥
स्वर सहित पद पाठप꣡रि꣢꣯ । स्यः । स्वा꣣नः꣢ । अ꣣क्षरन् । इ꣡न्दुः꣢꣯ । अ꣡व्ये꣢꣯ । म꣡द꣢꣯च्युतः । म꣡द꣢꣯ । च्यु꣣तः । धा꣡रा꣢꣯ । यः । ऊ꣣र्ध्वः꣢ । अ꣣ध्वरे꣢ । भ्रा꣣जा꣢ । न । या꣡ति꣢꣯ । ग꣣व्ययुः꣢ ॥१२४०॥
स्वर रहित मन्त्र
परि स्य स्वानो अक्षरदिन्दुरव्ये मदच्युतः । धारा य ऊर्ध्वो अध्वरे भ्राजा न याति गव्ययुः ॥१२४०॥
स्वर रहित पद पाठ
परि । स्यः । स्वानः । अक्षरन् । इन्दुः । अव्ये । मदच्युतः । मद । च्युतः । धारा । यः । ऊर्ध्वः । अध्वरे । भ्राजा । न । याति । गव्ययुः ॥१२४०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1240
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 16; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 8; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 16; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 8; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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विषय - उत्साह-धारण, दीप्ति
पदार्थ -
१. (स्यः) = वह (स्वान:) = [सु आनयति] उत्तमता से जीवन में उत्साह का संचार करनेवाला (मदच्युतः) = जीवन में उल्लास को क्षरित करनेवाला (इन्दुः) = सोम (अव्ये) = रक्षा करनेवालों में उत्तम पुरुष
में परि अक्षरत्=प्रवाहित होता है । २. (अध्वरे) = हिंसारहित जीवन यज्ञ में (धारा) = [धारया] धारण के उद्देश्य से (ऊर्ध्वः) = यह ऊर्ध्वगतिवाला होता है । जब सोम की उर्ध्वगति होती है तब यह जीवन का धारण करनेवाला होता है । ऊर्ध्वगति के लिए जीवन को हिंसारहित बनाना आवश्यक है। हिंसामय जीवन उत्तेजनापूर्ण होता है और उस उत्तेजना में सोम की ऊर्ध्वगति सम्भव नहीं रहती । ३. सोम की ऊर्ध्वगति होने पर (गव्ययुः) = ज्ञान को चाहनेवाला - ज्ञान को अपने साथ जोड़नेवाला व्यक्ति (भ्राजा) = दीप्ति के साथ (न) = निश्चय से [न इति निश्चयार्थे] (याति) = जाता है । सोमरक्षा होने पर ही मनुष्य में ज्ञान की पिपासा बढ़ती है और ज्ञान की रुचि के बढ़ने पर मनुष्य का जीवन एक विशेष दीप्ति को लिये हुए होता है । ]
भावार्थ -
सोम रक्षा से १. जीवन में उल्लास व मस्ती होती है २. सोम धारण के लिए उत्तेजना से दूर रहना आवश्यक है, ३. तब मनुष्य जिज्ञासु बनकर ज्ञान की दीप्ति के साथ विचरता है।
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