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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1334
ऋषिः - अग्नयो धिष्ण्या ऐश्वराः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - द्विपदा विराट् पङ्क्तिः
स्वरः - पञ्चमः
काण्ड नाम -
3
शि꣡शुं꣢ जज्ञा꣣न꣡ꣳ हरिं꣢꣯ मृजन्ति प꣣वि꣢त्रे꣣ सो꣡मं꣢ दे꣣वे꣢भ्य꣣ इ꣡न्दु꣢म् ॥१३३४॥
स्वर सहित पद पाठशि꣡शु꣢꣯म् । ज꣣ज्ञान꣢म् । ह꣡रि꣢꣯म् । मृ꣣जन्ति । पवि꣡त्रे꣢ । सो꣡म꣢꣯म् । दे꣣वे꣡भ्यः꣢ । इ꣡न्दु꣢꣯म् ॥१३३४॥
स्वर रहित मन्त्र
शिशुं जज्ञानꣳ हरिं मृजन्ति पवित्रे सोमं देवेभ्य इन्दुम् ॥१३३४॥
स्वर रहित पद पाठ
शिशुम् । जज्ञानम् । हरिम् । मृजन्ति । पवित्रे । सोमम् । देवेभ्यः । इन्दुम् ॥१३३४॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1334
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 19; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 11; सूक्त » 4; मन्त्र » 3
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 19; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 11; सूक्त » 4; मन्त्र » 3
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विषय - प्रभु के ध्यान से सोम-शुद्धि
पदार्थ -
१. (देवेभ्यः) = दिव्य गुणों की प्राप्ति के लिए (पवित्रे) = ध्यान करने पर हमारे जीवनों को पवित्र बनानेवाले प्रभु में (सोमम्) = सोम को (मृजन्ति) = शुद्ध करते हैं – पवित्र बनाते हैं। प्रभु के ध्यान से सोम को दूषित करनेवाली वासनाओं का विनाश हो जाता है । इस सोम की रक्षा होने पर हममें दिव्य गुणों की वृद्धि होती है । इसी बात को स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि उस सोम को वे पवित्र करते हैं जो शिशुम्=[शो तनूकरणे] हमारी बुद्धियों को सूक्ष्म बनानेवाला है २. (जज्ञानम्) = जो हमारा प्रादुर्भाव वा विकास करनेवाला है ३. (हरिम्) = हमारे सब रोगों का हरण करनेवाला है तथा ४. (इन्दुम्) = हमें शक्ति देनेवाला है ।
भावार्थ -
हम सोम को शुद्ध रक्खें । यह शुद्ध सोम हमें तीव्र बुद्धि, विकास, सबलता प्राप्त कराएगा |
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