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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1340
ऋषिः - त्रिशोकः काण्वः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
1
अ꣡यु꣢द्ध꣣ इ꣢द्यु꣣धा꣢꣫ वृत꣣ꣳ शू꣢र꣣ आ꣡ज꣢ति꣣ स꣡त्व꣢भिः । ये꣢षा꣣मि꣢न्द्रो꣣ यु꣢वा꣣ स꣡खा꣢ ॥१३४०॥
स्वर सहित पद पाठअ꣡यु꣢꣯द्ध । अ । यु꣣द्ध । इ꣢त् । यु꣣धा꣢ । वृ꣡त꣢꣯म् । शू꣡रः꣢꣯ । आ । अ꣣जति । स꣡त्व꣢꣯भिः । ये꣡षा꣢꣯म् । इ꣡न्द्रः꣢꣯ । यु꣡वा꣢꣯ । स꣡खा꣢꣯ । स । खा꣣ ॥१३४०॥
स्वर रहित मन्त्र
अयुद्ध इद्युधा वृतꣳ शूर आजति सत्वभिः । येषामिन्द्रो युवा सखा ॥१३४०॥
स्वर रहित पद पाठ
अयुद्ध । अ । युद्ध । इत् । युधा । वृतम् । शूरः । आ । अजति । सत्वभिः । येषाम् । इन्द्रः । युवा । सखा । स । खा ॥१३४०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1340
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 21; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 12; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 21; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 12; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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विषय - विना ही युद्ध के विजय
पदार्थ -
(येषाम्) = जिनका (युवा) = बुराई से पृथक् करनेवाला व भलाई से जोड़नेवाला (इन्द्रः) = सब शत्रुओं का विद्रावण करनेवाला प्रभु (सखा) = मित्र होता है, वह (अयुद्धः इत्) = [अविद्यमानं युद्धं यस्य] बिना ही किसी बड़े युद्ध के (युधा) = काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर आदि आसुर सैनिकों से (वृतम्) = घिरे हुए मन को (शूरः) = शूरवीर होता हुआ - शत्रुओं को शीर्ण करनेवाला बनकर (सत्वभिः) = सात्त्विक बलों से (आजति) = उखाड़ फेंकता है। प्रभु की शक्ति से यह इतना शक्तिमान् बन जाता है कि कामक्रोधादि प्रचण्ड शत्रुओं को बिना युद्ध किये उखाड़ फेंकता है।
भावार्थ -
प्रभु की मित्रता में भयंकर आसुरवृत्तियों को जीतना सुगम हो जाता है।
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