Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1386
ऋषिः - प्रजापतिर्वैश्वामित्रो वाच्यो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
काण्ड नाम -
5
प्र꣡ सु꣢न्वा꣣ना꣡यान्ध꣢꣯सो꣣ म꣢र्तो꣣ न꣡ व꣢ष्ट꣣ त꣡द्वचः꣢꣯ । अ꣢प꣣ श्वा꣡न꣢मरा꣣ध꣡स꣢ꣳ ह꣣ता꣢ म꣣खं꣡ न भृग꣢꣯वः ॥१३८६॥
स्वर सहित पद पाठप्र꣢ । सु꣣न्वाना꣡य꣢ । अ꣡न्ध꣢꣯सः । म꣡र्तः꣢꣯ । न । व꣣ष्ट । त꣢त् । व꣡चः꣢꣯ । अ꣡प꣢꣯ । श्वा꣡न꣢꣯म् । अ꣣राध꣡स꣢म् । अ꣣ । राध꣡स꣢म् । ह꣣त꣢ । म꣣ख꣢म् । न । भृ꣡ग꣢꣯वः ॥१३८६॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र सुन्वानायान्धसो मर्तो न वष्ट तद्वचः । अप श्वानमराधसꣳ हता मखं न भृगवः ॥१३८६॥
स्वर रहित पद पाठ
प्र । सुन्वानाय । अन्धसः । मर्तः । न । वष्ट । तत् । वचः । अप । श्वानम् । अराधसम् । अ । राधसम् । हत । मखम् । न । भृगवः ॥१३८६॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1386
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 12; खण्ड » 2; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 12; खण्ड » 2; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
Acknowledgment
विषय - लोभरूप महान् विघ्न
पदार्थ -
५५३ संख्या पर मन्त्रार्थ इस प्रकार है - मन्त्र का ऋषि अपने मित्रों से कहता है कि (भृगवः) = अपना परिपाक करनेवाले तपस्वियो ! (अराधसम्) = सिद्धि न होने देनेवाली (श्वानम्) = लोभवृत्ति को (उ) = निश्चय से (अपहत) = दूर विनष्ट करो (न मखम्) = यज्ञिय भावना को नहीं । (मर्त:) = हे मनुष्यो ! (अन्धसः) = आध्यातव्य परमात्मा के (प्रसुन्वानाय) = अपने अन्दर खूब विकास करनेवाले के लिए (तत् वच:) = वेदों के अर्थवादरूप वे वचन (न वष्ट) = रुचिकर [काम्य] नहीं होते।
भावार्थ -
काम्य कर्मों का न्यास करके हम नैष्कर्म्यसिद्धि द्वारा प्रभु को प्राप्त करें।
इस भाष्य को एडिट करें