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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1399
ऋषिः - वसिष्ठो मैत्रावरुणिः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः काण्ड नाम -
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अ꣣स्य꣢ प्रे꣣षा꣢ हे꣣म꣡ना꣢ पू꣣य꣡मा꣢नो दे꣣वो꣢ दे꣣वे꣢भिः꣢ स꣡म꣢पृक्त꣣ र꣡स꣢म् । सु꣣तः꣢ प꣣वि꣢त्रं꣣ प꣡र्ये꣢ति꣣ रे꣡भ꣢न्मि꣣ते꣢व꣣ स꣡द्म꣢ पशु꣣म꣢न्ति꣣ हो꣡ता꣢ ॥१३९९॥

स्वर सहित पद पाठ

अ꣣स्य꣢ । प्रे꣣षा꣢ । हे꣣म꣡ना꣢ । पू꣣य꣢मा꣢नः । दे꣣वः꣢ । दे꣣वे꣡भिः꣢ । सम् । अ꣣पृक्त । र꣡स꣢꣯म् । सु꣣तः꣢ । प꣣वि꣡त्र꣢म् । प꣡रि꣢꣯ । ए꣣ति । रे꣡भ꣢꣯न् । मि꣣ता꣢ । इ꣣व । स꣡द्म꣢꣯ । प꣣शुम꣡न्ति꣢ । हो꣡ता꣢꣯ ॥१३९९॥


स्वर रहित मन्त्र

अस्य प्रेषा हेमना पूयमानो देवो देवेभिः समपृक्त रसम् । सुतः पवित्रं पर्येति रेभन्मितेव सद्म पशुमन्ति होता ॥१३९९॥


स्वर रहित पद पाठ

अस्य । प्रेषा । हेमना । पूयमानः । देवः । देवेभिः । सम् । अपृक्त । रसम् । सुतः । पवित्रम् । परि । एति । रेभन् । मिता । इव । सद्म । पशुमन्ति । होता ॥१३९९॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1399
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 8; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 12; खण्ड » 3; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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पदार्थ -

५२७ संख्या पर इस मन्त्र का व्याख्यान इस प्रकार है – (अस्य प्रेषा) = इस प्रभु की प्रेरणा से और (हेमना) = गतिशीलता के द्वारा (पूयमानः) = अपने जीवन को पवित्र बनाता हुआ (देवः) = मनुष्य से देव बन जाता है। (देवेभिः) = इन दिव्य गुणों के द्वारा यह (रसम्) = आनन्दमय प्रभु के (समपृक्त) = सम्पर्क में आता है। (सुत:) = प्रेरणा को प्राप्त यह व्यक्ति (रेभन्) = प्रभु का स्तवन करता हुआ (पवित्रम्) = उस पूर्ण पवित्र प्रभु को (पर्येति) = सर्वथा प्राप्त होता है, (इव)-जैसे होता दानपूर्वक अदन करनेवाला (मिता) = माप कर बनाये हुए (पशुमन्ति) = गौ आदि पशुओंवाले (सद्म) = घरों में प्रवेश करता है । 
 

भावार्थ -

हम देव बनकर प्रभु को प्राप्त करें ।

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