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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1422
ऋषिः - मेध्यातिथिः काण्वः देवता - इन्द्रः छन्दः - बार्हतः प्रगाथः (विषमा बृहती, समा सतोबृहती) स्वरः - पञ्चमः काण्ड नाम -
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भू꣣या꣡म꣢ ते सुम꣣तौ꣢ वा꣣जि꣡नो꣢ व꣣यं꣡ मा न꣢꣯ स्तर꣣भि꣡मा꣢तये । अ꣣स्मा꣢न् चि꣣त्रा꣡भि꣢रवताद꣣भि꣡ष्टि꣢भि꣣रा꣡ नः꣢ सु꣣म्ने꣡षु꣢ यामय ॥१४२२॥

स्वर सहित पद पाठ

भू꣣या꣡म꣢ । ते꣣ । सुमतौ꣢ । सु꣢ । मतौ꣢ । वा꣣जि꣡नः꣢ । व꣣य꣢म् । मा । नः꣣ । स्तः । अभि꣡मा꣢तये । अ꣣भि꣢ । मा꣣तये । अ꣣स्मा꣢न् । चि꣣त्रा꣡भिः꣢ । अ꣣वतात् । अभि꣡ष्टि꣢भिः । आ । नः꣣ । सुम्ने꣡षु꣢ । या꣣मय ॥१४२२॥


स्वर रहित मन्त्र

भूयाम ते सुमतौ वाजिनो वयं मा न स्तरभिमातये । अस्मान् चित्राभिरवतादभिष्टिभिरा नः सुम्नेषु यामय ॥१४२२॥


स्वर रहित पद पाठ

भूयाम । ते । सुमतौ । सु । मतौ । वाजिनः । वयम् । मा । नः । स्तः । अभिमातये । अभि । मातये । अस्मान् । चित्राभिः । अवतात् । अभिष्टिभिः । आ । नः । सुम्नेषु । यामय ॥१४२२॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1422
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 16; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 12; खण्ड » 5; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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पदार्थ -

१. हे प्रभो ! (ते) = आपकी (सुमतौ) = कल्याणी मति में (वयम्) = हम (वाजिनः) = धन, बल, त्याग व ज्ञानवाले (भूयाम) = हों । वाज शब्द के धन, बल व त्याग अर्थ तो कोश में दिये ही हैं'वज गतौ' धातु से बनकर यह ज्ञान का भी वाचक है [ गतेस्त्रयोर्था ज्ञानं गमनं प्राप्तिश्च ] । वेद में प्रभु की कल्याणी मति का उपदेश है, उसके अनुसार चलने से हम इन चारों वस्तुओं को प्राप्त करेंगे ही। २. इन चारों के आ जाने पर कहीं हमें अभिमान न आ जाए, अतः 'मेध्यातिथि' प्रार्थना करता है कि नः = हमें अभिमातये=अभिमान के कारण मा स्तः = नष्ट मत कीजिए । हमें धन, बल, त्याग व ज्ञान – किसी का भी गर्व न हो ।

३. हे प्रभो! (अस्मान्) = [अस्तिमान्] आपकी सत्ता में पूर्ण आस्थावाले हमें आप (चित्राभिः) = [चित् रा] ज्ञान देनेवाली अथवा अद्भुत (अभिष्टिभिः) = अपने तक पहुँचने [Access] के द्वारा (अवितात्) = रक्षित कीजिए। जैसे माता बालक को अपने समीप कर सुरक्षित कर देती है उसी प्रकार आप हमें अपने समीप करके रक्षित कीजिए ।

४. (नः) = हमें (सुम्नेषु) = अपने स्तोत्रों में और उनके द्वारा सुखों में (आयामय) = धारण [Sustain] कीजिए। प्रभु-स्तवन से ही वस्तुतः जीवन में सुख व शान्ति मिलती है। 

भावार्थ -

हम प्रभु की कल्याणी मति को अपनाएँ।

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